नई दिल्ली। पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की हालात बहुत खराब है। इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि जितनी पाकिस्तान की जीडीपी है उससे ज्यादा उसपर कर्ज हो गया है। ताजा आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पहली बार पाकिस्तान का कुल कर्ज और देनदारियां 50.5 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई हैं, जिसमें 20.7 लाख करोड़ रुपये अकेले मौजूदा सरकार द्वारा लिया गया कर्ज है। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (एसबीपी) ने सितंबर 2021 तक कर्ज के आंकड़े जारी किए, जिसके एक दिन बाद प्रधानमंत्री इमरान खान ने बढ़ते कर्ज को "राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा" बता दिया है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस्लामाबाद में एक समारोह में कहा कि जिस तरह किसी घर में आमदनी कम हो और खर्चे ज्यादा हों, तो वो घर मुश्किल में पड़ा रहता है, पाकिस्तान का भी वही हाल है। खान ने कहा कि हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि अपने मुल्क को चलाने के लिए उतना पैसा नहीं है, इसकी वजह से हम कर्ज लेते हैं। इमरान खान ने कहा कि पाकिस्तान में टैक्स कल्चर कभी बना ही नहीं। टैक्स चोरी करना बुरी बात है, इसे लोग समझते ही नहीं हैं।
आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार के कार्यकाल के दौरान कुल कर्ज और सार्वजनिक कर्ज की स्थिति बिगड़ी है। सितंबर 2021 के अंत में पाकिस्तान का कुल कर्ज और देनदारी रिकॉर्ड 50.5 लाख करोड़ रुपये हो गई, जो पिछले 39 महीनों में 20.7 लाख करोड़ रुपये बढ़ी है। देश के कुल कर्ज में लगभग 70 फीसदी की वृद्धि हुई है।
प्रत्येक पाकिस्तानी पर जून 2018 में 1,44,000 रुपये बकाया था, जो सितंबर 2021 तक बढ़कर 235,000 रुपये हो गया, जो पीटीआई के कार्यकाल के दौरान 91,000 रुपये या 63% का अतिरिक्त बोझ था। अपने पूर्ववर्ती की तरह, पीटीआई सरकार भी विदेशी और घरेलू ऋणों पर चल रही है और राजस्व को ऐसे स्तर तक बढ़ाने में विफल रही है जहां उसपर कर्ज का बोझ कम किया जा सके।
जब सार्वजनिक ऋण की बात आती है तो स्थिति अलग नहीं होती है, जो कि संघीय सरकार की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी है। सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान सार्वजनिक ऋण में 16.5 ट्रिलियन रुपये जोड़े हैं, जो कि पिछली पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) सरकार द्वारा पांच वर्षों में हासिल किए गए कर्ज के 165% के बराबर था।
पीएम खान ने फरवरी 2019 में सार्वजनिक ऋण को 20 लाख करोड़ रुपये रुपये तक लाने की कसम खाई थी। वह पिछली पीपीपी और पीएमएल-एन सरकारों द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीतियों के बहुत आलोचक थे और उन्होंने 10 वर्षों में ऋण स्टॉक में 18 लाख करोड़ रुपये के जुड़ने के कारणों की जांच के लिए ऋण जांच आयोग की स्थापना की थी। जांच पूरी होने के बावजूद प्रधानमंत्री ने रिपोर्ट जारी करने पर रोक लगा दी है।
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