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पाकिस्तान ने अपना सारा ध्यान लगाया अफगानिस्तान पर, अर्थव्यवस्था हुई चकनाचूर

स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल जून तक सार्वजनिक कर्ज बढ़कर 39.9 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें महज तीन साल में 14.9 लाख करोड़ रुपये का इजाफा है।

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नई दिल्ली। पाकिस्तानी रुपया लगातार अपनी चमक खोता जा रहा है। इस साल जनवरी में एक डॉलर के मुकाबले पाकिस्‍तान रुपये की कीमत 159.6 पाकिस्तानी रुपये था। इसका वर्तमान मूल्य 167.05 रुपये  प्रति डॉलर है। जब अगस्त 2018 में प्रधानमंत्री इमरान खान ने पदभार ग्रहण किया था, तो पाकिस्तानी रुपये का मूल्य लगभग 121-122 प्रति डॉलर था। स्पष्ट रूप से, जब से खान ने पदभार संभाला है, मुद्रा में 40 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है।

मुद्रा के अवमूल्यन से कर्ज के बोझ पर और दबाव पड़ेगा क्योंकि आयात महंगा हो जाएगा, और यह तब है जब देश के खाद्य आयात में काफी वृद्धि हुई है। स्वाभाविक रूप से, सबसे बुरी तरह देश की गरीब आबादी प्रभावित है। भले ही पाकिस्तान प्रशासन अफगानिस्तान में तालिबान की सहायता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, मगर साथ ही उसकी खुद की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है।

2020-21 में, पाकिस्तान का खाद्य व्यापार घाटा 3.954 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो 2019-20 में 81.7 करोड़ डॉलर था। डॉन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष में देश को खाद्य वस्तुओं के आयात पर 8 अरब डॉलर से अधिक खर्च करना पड़ा था।

गेहूं, चीनी, दालें और अन्य कई जरूरी खाद्य बाहर से आयात की जाने वाली मुख्य वस्तुएं हैं। कई विश्लेषकों ने यहां तक कहा कि खाद्य आयात में और वृद्धि हो सकती है, क्योंकि अफगानिस्तान से शरणार्थियों की आमद हो सकती है।

बढ़ते चालू खाता घाटे ने देश से विदेशी मुद्रा को कम कर दिया है। एक विदेश नीति विशेषज्ञ ने इंडिया नैरेटिव को बताया पाकिस्तान के साथ समस्या यह है कि वह अर्थव्यवस्था के अलावा अन्य गतिविधियों पर केंद्रित रहा है। देश के लिए प्राथमिकताएं उसकी सीमाओं के बाहर की गतिविधियां हैं और यह दुखद कहानी है।

पाकिस्तान स्थित द न्यूज इंटरनेशनल ने कहा कि हालांकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था शायद ही कभी स्थिर आधार पर रही हो, पिछले तीन वर्षों से हम ज्यादातर समय रोलरकोस्टर की सवारी पर रहे हैं। विनिमय दर में उतार-चढ़ाव हो रहा है और अब अमेरिकी डॉलर 167 रुपये के निशान को छू रहा है जो 2018 के बाद से पाक मुद्रा का काफी मूल्यह्रास दिखा रहा है।

2018 के बाद से देश का कुल कर्ज भी 149 खरब रुपये बढ़ा है। यह और भी विडंबनापूर्ण है क्योंकि खान द्वारा किए गए मुख्य वादों में से एक कर्ज कम करना था। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (एसबीपी) के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल जून तक सार्वजनिक कर्ज बढ़कर 39.9 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें महज तीन साल में 14.9 लाख करोड़ रुपये का इजाफा है। हालांकि, देश को पिछले महीने के अंत में अपने विशेष आहरण अधिकारों में अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष से 2.5 अरब डॉलर प्राप्त हुए हैं और विश्लेषकों का कहना है कि इससे खान सरकार को कुछ जरूरी राहत मिलेगी।

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