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Hindi News पैसा बिज़नेस खपत बढ़ने से वित्त वर्ष 2016-17 में मजबूत सुधार की उम्मीद: मोर्गन स्टेनले

खपत बढ़ने से वित्त वर्ष 2016-17 में मजबूत सुधार की उम्मीद: मोर्गन स्टेनले

वास्तविक ब्याज दर सकारात्मक रहने तथा महंगाई दर के नियंत्रण में रहने से निजी क्षेत्र की खपत में वृद्धि होना तय है, ऐसे में 2016-17 में वृद्धि दर बेहतर होगी।

FY-17 में खपत बढ़ने से इकोनॉमी में होगा मजबूत सुधार, ओवरऑल ग्रोथ रिकवरी रहेगी बेहतर- India TV Paisa FY-17 में खपत बढ़ने से इकोनॉमी में होगा मजबूत सुधार, ओवरऑल ग्रोथ रिकवरी रहेगी बेहतर

मुंबई। वास्तविक ब्याज दर के सकारात्मक रहने तथा महंगाई दर के नियंत्रण में रहने से निजी क्षेत्र की खपत में वृद्धि होना तय है, ऐसे में वित्‍त वर्ष 2016-17 के दौरान आर्थिक वृद्धि दर बेहतर होगी और यह 1998-2002 के पुनरुद्धार चक्र से बेहतर होगी। ब्रोकरेज कंपनी मोर्गन स्टेनले इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।

मोर्गन स्टेनले के चेतन आह्या द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में 1998 से 2002 की अवधि तथा 2013 में शुरू मौजूदा नरमी के चक्र के दौरान वृहद मानकों के साथ-साथ सूक्ष्म मानदंडों की आपस में तुलना की गई है, जो कि काफी समान लगते हैं। आह्या ने मैक्रो इंडिकेटर्स चार्ट-बुक: 1998-2002 चक्र की याद दिलाने वाला? शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा है कि हमारा अनुमान है कि निजी खपत में आने वाला सुधार 1998-02 के पिछले चक्र की तुलना में मजबूत होगा। इस लिहाज से कुल मिलाकर हमारा मानना है कि आर्थिक वृद्धि पूर्व चक्र की तुलना में बेहतर रहेगी, हालांकि, 2004-07 की तुलना में अपेक्षाकृत यह धीमा होगा।

रिपोर्ट के अनुसार निजी खपत और सार्वजनिक पूंजी व्यय द्वारा चालू चक्र में घरेलू मांग में पुनरुद्धार जल्दी ही होने वाला है, जो कि 1998-02 चक्र में नहीं था। इसमें यह भी कहा गया है कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किए जाने तथा नए रोजगार सृजन के साथ निजी खपत में और तेजी आने की संभावना है। रिपोर्ट के मुताबिक 1998-2002 और 2013-16 के आंकड़ों की तुलना की गई है। इसमें कहा गया है कि 1998-02 में वैश्विक और घरेलू कारकों की वजह से निजी और सार्वजनिक खर्च दोनों ही कमजोर थे, जिसकी वजह से ग्रोथ धीमी थी। वहीं दूसरी ओर वर्तमान में अर्थव्‍यवस्‍था में 1998-02 के जैसे ही ट्रेंड हैं, निजी खर्च अभी भी कमजोर है। लेकिन दो चीजें हैं जो भिन्‍न हैं, पहला मजबूत सार्वजनिक खर्च और ऊंचा एफडीआई निवेश। विदेशी निवेश लगातार बढ़ रहा है और राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.4 फीसदी के लक्ष्‍य से नीचे बना हुआ है।

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