नई दिल्ली। सरकार ने तेल के बढ़ते दाम से लोगों को राहत देने के लिए पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी में कटौती को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है। उसने कहा है कि कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में तेजी चिंता का कारण है क्योंकि इससे देश का आयात बिल 50 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। इसका असर चालू खाते के घाटे (कैड) पर पड़ेगा।
हालांकि आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा कि तेल के दाम में तेजी का आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। कच्चे तेल का दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में 80 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है, जो नवंबर 2014 के बाद सर्वाधिक उच्च स्तर है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि सरकार स्थिति पर नजर रखे हुए है और समुचित कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने इस बारे में विस्तार से कुछ नहीं बताया।
यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती करेगी, उन्होंने कहा कि उन्हें इसके बारे में कुछ भी नहीं कहना है। गर्ग ने कहा कि तेल के दाम में वृद्धि से तेल आयात खर्च में चालू वित्त वर्ष में 25 अरब डॉलर से 50 अरब डॉलर के दायरे में वृद्धि हो सकती है। देश ने पिछले वित्त वर्ष में तेल आयात बिल पर 72 अरब डॉलर की राशि खर्च की थी।
उन्होंने कहा कि इससे चालू खाते का घाटा बढ़ेगा लेकिन मुद्रास्फीति नियंत्रण में है और राजकोषीय घाटे की स्थिति चिंताजनक नहीं है। गर्ग ने कहा कि बांड और शेयर बाजारों से विदेशी पूंजी निकासी देखी गई है लेकिन यह चिंताजनक नहीं है। उन्होंने कहा कि डेढ़ महीने में 4-5 अरब डॉलर की निकासी बहुत अधिक नहीं है। सरकार उधारी कार्यक्रम जारी रखेगी और इस पर प्रतिक्रिया देने का कोई कारण नहीं दिखता।
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