नई दिल्ली। RBI (भारतीय रिजर्व बैंक) के गवर्नर की भूमिका नीतिगत दरें तय करने में अब कम होगी। नई व्यवस्था के तहत ब्याज दरों को तय करने के लिए एक कमेटी होगी, जिसमें सरकार और केंद्रीय बैंक की बराबर हिस्सेदारी होगी। आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने गुरुवार को कहा कि सरकार और केंद्रीय बैंक इंटरेस्ट रेट सेटिंग मॉनेट्री पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) की संरचना पर सहमत हो गए हैं। उन्होंने कहा कि एमपीसी समझौता लगभग पूरा हो चुका है, केवल कुछ चीजें बची हैं। एमपीसी की संरचना में सरकार और आरबीआई की बराबर की हिस्सेदारी होगी।
सरकार ने वित्त मंत्रालय और आरबीआई के प्रतिनिधियों वाली एमपीसी के गठन का प्रस्ताव दिया था, जो ब्याज दरों को तय करेगी। राजन ने कहा कि एमपीसी को लागू करने का अंतिम फैसला वित्त मंत्रालय लेगा। वित्त मंत्रालय ने इस साल जुलाई में इंडियन फाइनेंशियल कोड (आईएफसी) का संशोधित ड्राफ्ट जारी किया था, जिसमें ब्याज दर तय करने पर आरबीआई गवर्नर की वीटो पावर खत्म कर एक सात सदस्यीय एमपीसी कमेटी को अधिकार देने का प्रस्ताव किया गया था।
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एमपीसी के इन सात सदस्यों में से चार सदस्यों को सरकार नामित करेगी और बाकी के तीन सदस्य आरबीआई द्वारा नामित होंगे। मौजूदा पॉलिसी के मुताबिक आरबीआई गवर्नर की नियुक्ति सरकार करती है, जो मौद्रिक नीति पर नियंत्रण रखता है। अभी ब्याज दर तय करने के लिए आरबीआई और सरकार द्वारा नामित सदस्यों की एडवाइजरी कमेटी तो है लेकिन आरबीआई गवर्नर के पास इनके सुझाव मानने या न मानने का वीटो पावर भी है। सरकार आरबीआई गवर्नर के इस वीटो पावर को खत्म करना चाहती है। सरकार नीतिगत दरों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है। नई व्यवस्था में वोट के आधार पर नीतिगत दरें तय की जाएंगी। एमपीसी में अधिकांश वोट के आधार पर ब्याज दरों को तय किया जाएगा।
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