नई दिल्ली: जब अरामको के विश्व के दो सबसे बड़े तेल प्रसंस्करण संयंत्रों पर ड्रोन से हमला किया गया, तब इसकी तेज आवाज से न केवल सऊदी अरब के निवासी हिल उठे, बल्कि पूरा वैश्विक तेल उद्योग हिल उठा और व्यापारियों में अफरातफरी मच गई। उन्हें 1991 में इराक द्वारा कुवैत पर किए गए हमले के बाद पैदा हुए तेल संकट की आहट एक बार फिर से सुनाई देने लगी। और यह घबराहट अकारण नहीं था। हमले से तत्काल कच्चे तेल का उत्पादन 57 लाख बैरल प्रतिदिन घट गया, जिससे अरामको का उत्पादन घटकर आधा रह गया। यह तेल उत्पादन में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट थी, यहां तक कि 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद भी बाजार से कच्चे तेल का उत्पादन 40 लाख प्रति बैरल ही घटा था।
जैसी कि उम्मीद थी, सोमवार 14 सितंबर के हमले के बाद यह पहला पूरा कार्यदिवस था, जिसके तहत कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पारकर 19 फीसदी की वृद्धि के साथ 72 डॉलर प्रति बैरल हो गया। इस घटना के बाद भारत के लिए भी खतरे की घंटी बज गई, क्योंकि देश अपनी घरेलू जरूरतों का करीब 83 प्रतिशत सऊदी अरब से आयात करता है और इसके बाद केवल 20 प्रतिशत इराक से आयात करता है। लंबे समय तक आपूर्ति में कमी का मतलब है कि भारत को आपात उपाय के तहत अन्य बाजारों से ऊंची दर पर तेल खरीदने पड़ेंगे, जिससे देश के चालू खाता घाटा (सीएडी) पर असर पड़ेगा।
सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, "स्थिति अभी भी भारत के लिए अच्छी नहीं है, लेकिन सरकार द्वारा संचालित तेल विपणन कंपनियां मौजूदा स्थिति को संभालने के लिए तैयार हैं। कंपनियों के स्टॉक उच्चस्तर पर हैं और सऊदी अरब से तेल की कई खेप पहले से ही समुद्र में है और कुछ ही दिनों में यह देश में पहुंच जाएगी। इसलिए अगर तेल में कमी कुछ हफ्तों या उससे भी अधिक दिन के लिए बरकरार रहती है तो संकट पैदा नहीं होगा।"
भारत के लिए अच्छी खबर यह है कि सऊदी अरब ने संकेत दिया है कि तेल संकट कुछ ही दिनों में दूर हो जाएगा।
सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री और अरामको के सीईओ ने मंगलवार को एक प्रेस वार्ता में कहा था कि उनका देश निर्यात स्तर को इस माह हमले से पहले के स्तर तक ले आएगा, जिसके लिए वह अपने भंडारों से ज्यादा तेल निकालेगा, अप्रभावित क्षेत्रों से अपने उत्पादन को बढ़ाएगा।
तेल क्षेत्र के एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा, "भारत के लिए सबसे बड़ा डर इस समय तेल की ऊंची कीमत है, वह भी ऐसे समय में जब देश की जीडीपी दर घट रही है और यह गिरकर पांच प्रतिशत रह गई है। तेल पर अधिक खर्च करने का मतलब होगा अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कम फंड का होना। इसके अलावा तेल कीमतों में वृद्धि का मतलब पेट्रोल व डीजल के खुदरा मूल्यों मे वृद्धि होना है, जिससे सरकार को तीन राज्यों में होने वाले चुनाव के पहले लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।"
कोटक की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि की वजह से, भारतीय तेल कंपनियां आने वाले समय में डीजल और गैसोलीन की कीमत प्रति लीटर 5 से 6 रुपये तक बढ़ा सकती हैं। लेकिन सरकार के सूत्रों का कहना है कि अगर यह संकट लंबा खिंचता है तो भी, पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें धीरे-धीरे बढ़ेगी, जिससे उपभोक्ताओं पर इसका असर कम होगा। तेल कंपनियों ने इस वर्ष अप्रैल और मई में आम चुनाव के दौरान भी कई दिनों तक तेल के खुदरा मूल्य में बढ़ोतरी नहीं की थी, जबकि इसे तब बढ़ाए जाने की जरूरत थी।
इसबीच भारत ने भी रूस और अमेरिका के उत्पादन बाजार को देखते हुए तेल की अबाधित आपूर्ति के लिए अपने प्रयास तेज कर दिए हैं।
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