नई दिल्ली। नीति आयोग भारत के लिए उर्जा आत्मनिर्भरता हासिल करने के संभावित तरीकों के रूप में मेथनॉल को अपनाने पर बहुत गंभीरता से विचार कर रहा है। हालांकि, सवाल यह है कि क्या भारत ईंधन के नए रूप मेथनॉल को अपनाते हुए पेट्रोलियम उत्पादों के महंगे आयात पर निर्भरता की अपनी आदत को छोड़ेगा। सरकार के प्रमुख शोध संस्थान नीति आयोग का मानना है कि वैकल्पिक ईंधन के रूप में मेथनॉल को अपनाना एक क्रांतिकारी विचार है और यह जलवायु परिवर्तन का भी एक जवाब बन सकता है।
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी पेट्रोलियम आयात को समाप्त करने की प्रतिबद्धता जता चुके हैं ऐसे में क्या यह वुड अल्कोहल भारत के तेल आयात बिल का समाधान साबित हो सकता है? भारत के प्रभावशाली परिवहन मंत्री ने मेथनॉल अर्थव्यवस्था पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, हम एक ऐसा देश बनना चाहते हैं जहां पेट्रोलियम आयात के लिए आयात बिल शून्य हो। आज भारत पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर 4.5 लाख करोड़ रुपए सालाना खर्च कर रहा है। गडकरी का मानना है कि मीथेन आयात का सस्ता विकल्प है। इसके साथ ही यह कचरे से आय या संपत्ति वेस्ट से वेल्थ अर्जित करने का भी बड़ी राह है। यहां गडकरी ने नागपुर में नगर निकाय का दूषित या खराब पानी बेचकर 18 करोड़ रुपए की आय का उदाहरण दिया। इस पानी से मीथेन एक उप उत्पाद है।
मेथनॉल को वुड अल्कोहल भी कहा जाता है जो कि मीथेन गैस से उत्पादित मौलिक हाइड्रोकार्बन है। यह हर दिन इस्तेमाल होने वाले उस अल्कोहल व एथेनॉल से बहुत अलग है जो बीयर, व्हिस्की आदि में पाया जाता है या वाहनों में इस्तेमाल किया जाता है। मेथनॉल अल्कोहल का सबसे सरल रूप है और यह मनुष्यों के लिए हानिकारक है लेकिन जैसा कि नीति आयोग का कहना है, उत्कृष्ट निम्न उतार चढ़ाव वाला, रंगहीन ज्वलनशील तरल ईंधन है जिसे पेट्रोल में मिलाया जा सकता है। यह पेट्रोल का बहुत अच्छा प्रतिस्पाथन है। आयोग का मानना है कि मेथनॉल समूह के ही डाइमिथाइल ईथर (डीएमई) को डीजल के अच्छे व स्वच्छ विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
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