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रबी सत्र में सरसों उत्पादन करीब 90 लाख टन रहने का अनुमान: तेल उद्योग

अनुमान के मुताबिक राजस्थान में सबसे अधिक 35 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 15 लाख टन, पंजाब ,हरियाणा में 10.5 लाख टन, मध्य प्रदेश में 10 लाख टन उत्पादन हो सकता है।

<p>90 लाख टन सरसों का...- India TV Paisa Image Source : PTI 90 लाख टन सरसों का उत्पादन

नई दिल्ली। रबी सत्र की प्रमुख तिलहन फसल सरसों का उत्पादन इस बार करीब 90 लाख टन रहने का अनुमान लगाया गया है। खाद्य तेल उद्योग ने तिलहन क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिये किसानों और तेल उद्योग को समर्थन देने की गुहार लगाई है। तेल उद्योग एवं व्यापार संगठन ‘सेंट्रल आर्गनाईजेशन फार आयल इंडस्ट्री एण्ड ट्रेड (सीओओआईटी) के बैनर तेल रविवार को यहां आयोजित 41वीं रबी सेमिनार में सरसों उत्पादन का यह अनुमान व्यक्त किया गया।

अनुमान के मुताबिक राजस्थान में सबसे अधिक 35 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 15 लाख टन, पंजाब ,हरियाणा में 10.5 लाख टन, मध्य प्रदेश में 10 लाख, पश्चिम बंगाल में पांच लाख और गुजरात में चार लाख टन सरसों उत्पादन का अनुमान व्यक्त किया गया। इसके अलावा दस लाख टन अन्य राज्यों में होने का अनुमान है। कुल मिलाकर 89.50 लाख टन सरसों उत्पादन का अनुमान व्यक्त किया गया। सीओओआईटी के अध्यक्ष लक्ष्मी चंद अग्रवाल ने कहा कि तेल उद्योग ने सरकार से देश के तिलहन उत्पादक किसानों को समर्थन देने की मांग की है। देश में बड़ी मात्रा में विदेशों से खाद्य तेल का आयात किया जाता है जिसपर बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च होती है। यदि घरेलू स्तर पर किसानों और तेल उद्योग को समर्थन मिलता रहे तो देश में ही तिलहन का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और देश को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। इस साल के लिये सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,650 रुपये क्विंटल तय किया है जबकि बाजार में भाव 5,800 रुपये क्विंटल से ऊपर चल रहे हैं। इससे किसान और तेल उद्योग उत्साहित है। तेल तिलहन उद्योग के जानकारों का मानना है कि यह स्थिति तब बनी है जब विदेशों में भी खाद्य तेलों के दाम ऊंचे चल रहे हैं। विदेशों में भाव टूटने पर घरेलू बाजार को इस स्तर पर बनाये रखना मुश्किल हो जाता है।

सीओओआईटी ने सरसों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिये सरकारी खरीद करने वाली एजेंसियों नेफेड और हाफेड से मौजूदा बाजार भाव पर सरसों की खरीद करने की मांग की है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि एजेंसियों ने कहा कि उनका मकसद बाजार भाव एमएसपी से नीचे जाने पर किसानों को समर्थन देना है। एजेंसियां प्रसंस्करणकर्ताओं को कच्चे माल की आपूर्ति वाली एजेंसी नहीं बन सकती हैं।

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