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Hindi News पैसा बिज़नेस हिमाचली टोपी और एमपी की "गुड़िया" को मिलेगी वैश्विक पहचान, जल्द GI टैग प्रोडक्ट में होंगे शामिल

हिमाचली टोपी और एमपी की "गुड़िया" को मिलेगी वैश्विक पहचान, जल्द GI टैग प्रोडक्ट में होंगे शामिल

रंगबिरंगी हिमाचली टोपी शायद हम सभी ने देखी और पहनी होगी। अब जल्द ही इस हिमाचली टोली को वैश्विक पहचान मिलने जा रही है।

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रंगबिरंगी हिमाचली टोपी शायद हम सभी ने देखी और पहनी होगी। अब जल्द ही इस हिमाचली टोली को वैश्विक पहचान मिलने जा रही है। जल्द ही यह टोपी जीआई यानि कि जियोग्राफिकल इंडिकेशन वाले प्रोडक्ट की लिस्ट में शामिल हो सकती है। हिमाचली टोपी के साथ ही मध्य प्रदेश के झाबुआ की प्रसिद्ध "आदिवासी गुड़िया" भी जल्द ही भारत से विश्व की प्रसिद्ध दार्जिलिंग चाय, गोवा की फेनी और महाराष्ट्र के अल्फांसो आम जैसे जीआइ टैग उत्पादों की विशेष सूची में शामिल हो सकती है। मध्यप्रदेश की यह अनूठी गुड़िया कला भील और भिलाला आदिवासियों की विरासत मानी जाती है। मध्यप्रदेश की यह गुड़िया उन 53 अन्य आदिवासी मूल के संभावित उत्पादों की सूची में है, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग लगाने के लिए विचार कर रही है।

बता दें कि जीआई टैग एक संकेत है जिसका उपयोग किसी उत्पाद की उत्पत्ति या निर्माण के भौगोलिक क्षेत्र को दर्शाने के लिए किया जाता है और यह गुणवत्ता और उस क्षेत्र की अनोखी और खास विशेषताओं को दर्शाता है।

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अभी तक वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड डीपीआईआईटी द्वारा चयनित 370 जीआई टैग प्रोडक्ट में सिर्फ 50 प्रोडक्ट आदिवासी मूल के हैं। आदिवासी उत्पादों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराने की नियत से आदिवासी मंत्रालय के तहत आने वाले ट्राइबल कोओपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया 54 ऐसे संभावित उत्पाद चुने हैं जिन्हें जीआई टैग दिया जा सकता है।

इस संभावित सूची के अन्य उत्पादों में याक ऊन और लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में जनजातियों द्वारा तैयार की जाने वाली औषधीय सीबकथॉर्न प्लांट शामिल हैं। इसके अलावा इस सूची में  राजस्थान के बांसवाड़ा में भील जनजाति द्वारा बनाए गए लकड़ी के धनुष और तीर भी शामिल हैं। मणिपुर से काली लोंगपी मिट्टी के बर्तन और काले चावल, पारंपरिक हिमाचली टोपी, लाहौली मोजे और छत्तीसगढ की बांस की बांसुरी भी शामिल है।

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