PM मोदी का ‘best friend’ आया वापस, क्या भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए दोबारा ला सकता है ये अच्छे दिन
क्रूड ऑयल की कीमतों को नरेंद्र मोदी का बेस्ट फ्रेंड कहा जाता है, क्योंकि इसने लगभग ढाई साल तक भारत के चालू खाता घाटा, राजकोषीय घाटा और महंगाई को नियंत्रण में बनाए रखने में सरकार की काफी मदद की थी।
नई दिल्ली। क्रूड ऑयल की कीमतों को नरेंद्र मोदी का बेस्ट फ्रेंड कहा जाता है, क्योंकि इसने लगभग ढाई साल तक भारत के चालू खाता घाटा, राजकोषीय घाटा और महंगाई को नियंत्रण में बनाए रखने में सरकार की काफी मदद की थी। सबसे महत्वपूर्ण, इसने सरकार को ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने की भी सहूलियत दी थी। लेकिन इसके बाद, पिछले साल तेल की कीमतों में तेजी आना शुरू हो गया और यह मई के मध्य तक 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं। इसने न केवल सरकार पर ईंधन कीमतों पर नजर रखने का दबाव बनाया बल्कि भारत के बजट को भी लाल निशान में ला दिया।
हालांकि, अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्ट कंट्रीज (ओपेके) ने 1 जुलाई से तेल आपूर्ति में प्रतिदिन 10 लाख बैरल की वृद्धि करने का फैसला किया। वहीं अमेरिका में जुलाई के अंतिम सप्ताह में तेल भंडार में 56 लाख बैरल की वृद्धि हुई। इन दोनों वजहों से जुलाई में ब्रेंट क्रूड ऑयल प्राइस में 6 प्रतिशत और यूएस क्रूड फ्यूचर में 7 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आई है। जुलाई 2016 के बाद यह सबसे बड़ी मासिक गिरावट है।
तेल विश्लेषकों का अनुमान है कि अगले छह महीनों में तेल की कीमतें एक सीमा के भीतर ही बनी रहेंगी। बार्कले ने एक रिसर्च नोट में कहा है कि बाजार ने तेल उत्पादक देशों की अतिरिक्त क्षमता को कम करके आंका है और अनुमान लगाया है कि तेल की कीमतें औसत 73 डॉलर प्रति बैरल पर बनी रहेंगी।
तेल की बढ़ती कीमतों का सीधा असर भारत के चालू खाता घाटा पर पड़ता है। क्योंकि भारत तेल के लिए बहुत हद तक आयात पर निर्भर है। क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हालांकि, राजकोष के मामले में, पेट्रोल और डीजल को बाजार के हवाले करने और सरकार की एक्साइज ड्यूटी नीति (जब कीमतें कम हों तब एक्साइज ड्यूटी बढ़ाना और जब कीमतें अधिक हों तो उसे न घटाना) की वजह से सरकार को कुछ राहत मिली है।
क्रिसिल का कहना है कि आगे भी सरकार के लिए आरामदायक स्थिति बनी रहेगी क्योंकि अधिकांश अनुमानों में कहा गया है कि अगले साल से कच्चे तेल की मांग कम होने और गैर-परंपरागत ईंधन विकल्पों की ओर संरचनात्मक बदलाव की वजह से तेल की कीमतें स्थिर रहेंगी।
सरकार ने पहले कहा था कि भारत में तेल की कीमतों को 60 डॉलर प्रति बैरल तक आराम से संभालने की क्षमता है, और अगर यह 68-70 डॉलर प्रति बैरल पर रहता है तो सदमे को सहन करने की क्षमता है। तेल की कीमतें 77-80 डॉलर से फिसलकर 73 डॉलर पर आना भारत के लिए एक अच्छी खबर है। परिणामस्वरूप, पेट्रोल की कीमत पिछले दो महीने में 2 रुपए प्रति लीटर कम हुई है। दिल्ली में पेट्रोल की कीमत बुधवार को 76.31 रुपए प्रति लीटर है, जो 29 मई को रिकॉर्ड 78.43 रुपए प्रति लीटर पर पहुंच गई थी।