नई दिल्ली। देश में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज सभी डेबिट कार्ड, भीम यूपीआई और आधार सक्षम पेमेंट सर्विस के जरिये 2,000 रुपए तक के लेनदेन पर लगने वाले मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) शुल्क को सरकार द्वारा वहन करने को अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार अगले दो साल तक इस शुल्क का वहन करेगी। एक जनवरी 2018 से यह नियम लागू होगा और सरकार बैंकों को इस शुल्क की प्रतिपूर्ति करेगी।
वित्ती सेवा विभाग के सचिव, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय के सचिव तथा नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) के सीईओ वाली एक कमेटी इस तरह के लेनदेन के इंडस्ट्री कॉस्ट स्ट्रक्चर पर विचार करेगी जिसके आधार प्रतिपूर्ति का स्तर तय किया जाएगा। मंत्रिमंडल के इस फैसले से 2000 रुपए तक के लेनदेन पर ग्राहक और मर्चेंट को एमडीआर के रूप में अतिरिक्त बोझ से छुटकारा मिलेगा। इससे डिजिटल लेनदेन को अपनाने के लिए बढ़ावा भी मिलेगा।
ऐसा अनुमान है कि 2000 रुपए से कम के सभी लेनदेन पर सरकार द्वारा प्रतिपूर्ति किए जाने वाले एमडीआर का मूल्य वित्त वर्ष 2018-19 में 1050 करोड़ रुपए और वित्त वर्ष 2019-20 में 1462 करोड़ रुपए होगा। जब मर्चेंट के प्वाइंट ऑफ सेल पर भुगतान किया जाता है तब एमडीआर का भुगतान मर्चेंट द्वारा बैंक को किया जाता है। इस वजह से अधिकांश लोग कार्ड होने के बावजूद नकद भुगतान करना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी प्रकार भीएम यूपीआई और आधार सक्षम पेमेंट सर्विस के जरिये भुगतान करने पर भी एमडीआर शुल्क लगता है।
आरबीआई ने हाल ही में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए एमडीआर शुल्कों को तर्कसंगत बनाया था। आरबीआई ने कहा था कि हाल ही के समय में प्वाइंट ऑफ सेल पर डेबिट कार्ड लेनदेन में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। उत्पादों और सेवाओं की खरीद के लिए डेबिट कार्ड भुगतान के उपयोग को और बढ़ाने के लिए मर्चेंट की कैटेगरी के आधार पर एमडीआर शुल्कों को तर्कसंगत बनाया गया है।
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