आत्मनिर्भर भारत: सूर्य और पानी से बनेगी सस्ती हाइड्रोजन, जानिये इस हफ्ते भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियां
वैज्ञानिकों ने इस हफ्ते 2 ऐसी तकनीकों की जानकारी दी जिससे सूर्य और पानी से हाइड्रोजन और डेयरी इंडस्ट्री से निकले वेस्ट के इस्तेमाल से बायोगैस का उत्पादन किया जा सकता है
नई दिल्ली। आत्मनिर्भरता का लक्ष्य पाने में पहला और सबसे अहम कदम है नई या बेहतर स्वदेशी तकनीकों की खोज। देश के वैज्ञानिकों के द्वारा किसी भी नई तकनीक या तरीके की खोज जो देश की किसी समस्या को दूर करने में समर्थ हो देश को और अर्थव्यवस्था को दूसरे देशों और अर्थव्यवस्थाओं से बढ़त बनाने में काफी मदद करती है। यही वजह है कि भारत सरकार के द्वारा आत्मनिर्भर अभियान के साथ ही रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर भी लगातार फोकस किया जा रहा है। अब स्थिति ये हैं कि लगभग हर कुछ दिन में वैज्ञानिक एक नई तकनीक के साथ सामने आ रहे हैं। आइये नजर डालते हैं इस हफ्ते सामने आई भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर
रोशनी और पानी से बनेगी सस्ती हाइड्रोजन
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक वैज्ञानिकों की एक टीम ने पहली बार एक बड़े पैमाने का रिएक्टर विकसित किया है जो सूर्य के प्रकाश और पानी जैसे स्रोतों का उपयोग करके पर्याप्त मात्रा में हाइड्रोजन का उत्पादन कर सकता है। भारत मे सूरज की रोशनी और पानी की कमी नहीं है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि ये तकनीक आने वाले समय मे साफ ऊर्जा को पाने में काफी मददगार साबित होगी। दरअसल भारत ने 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य रखा है, जिसके लिये सरकार ऐसे नये उपायों पर फोकस कर रही है, जो उसे इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद करें। इस रिएक्टर को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान नैनो विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) मोहाली के डॉ. कमलकन्नन कालीसम और उनकी टीम ने तैयार किया है। टीम ने जानकारी दी है कि सूरज की रोशनी और पानी का इस्तेमाल कर ये रिएक्टर 8 घंटे में 6.1 लीटर हाइड्रोजन का उत्पादन करने में सक्षम है। टीम ने इसके पेंटेट के लिये आवेदन कर दिया है। मंत्रालय की रिलीज के मुताबिक फिलहाल इस तकनीक से प्राप्त हाइड्रोजन के इस्तेमाल से दूर दराज के इलाके में फ्यूल सेल के माध्यम से बिजली उत्पादन, हाइड्रोजन स्टोव और छोटे गैजेट्स को बिजली देने जैसे काम किये जा सकते हैं। हालांकि टीम का मुख्य लक्ष्य ऐसे रिएक्टर की मदद से आने वाले समय में ट्रांसफार्मर और इलेक्ट्रिक व्हीकल को पावर देना है।
डेयरी उद्योग से निकले गाद से बायोगैस बनाने की तकनीक विकसित
वैज्ञानिकों ने डेयरी इंडस्ट्री से निकलने वाले वसा की अधिकता वाली गाद से बायोगैस बनाने की एक तकनीक ढूंढी है। इस तकनीकी को सीएसआईआर-सीएफटीआरआई मैसूर में डॉ. संदीप एन. मुदलियार ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के वेस्ट मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी कार्यक्रम की सहायता से विकसित किया है। तकनीक के पेटेंट के लिये जल्द आवेदन किया जायेगा। इस तकनीक से उद्योग से निकलने वाले वेस्ट का ज्यादा बेहतर प्रबंधन किया जा सकेगा, वहीं इंडस्ट्री अपनी ऊर्जा जरूरतों को भी पूरा कर सकेगी।
उद्योग जगत को मिलेगा क्या फायदा
भारत सरकार लगभग सभी योजनाओं में निजी क्षेत्र को साथ लेकर चल रही है। सरकार रिसर्च को मदद देती जिससे नई तकनीक का विकास हो बाद में इनके कमर्शियल प्रोडक्शन में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के जरिये निजी क्षेत्रों की क्षमता का इस्तेमाल किया जाता है। उत्पादन बढ़ने से क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर होता है, वहीं एक्सपोर्ट्स के जरिये नये अवसर भी खुलते हैं। बड़े पैमाने पर उत्पादन के शुरू होने पर रोजगार के अवसर भी मिलते हैं। कोरोना संकट से लेकर कई अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं तक में सरकार ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के जरिये निजी क्षेत्र को साथ जोड़ा है।