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Hindi News पैसा बिज़नेस लेबर क्राइसिस की वजह से प्रभावित हो सकता है भारत में चीन का निवेश

लेबर क्राइसिस की वजह से प्रभावित हो सकता है भारत में चीन का निवेश

सरकारी मीडिया का कहना है कि चीन के निवेशकों के लिए भारत की राह आसान नहीं होगी। चीन की कंपनियों को भारत में लेबर यूनियनों का सामना करना होगा।

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बीजिंग। चीन अपनी कंपनियों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित नहीं करेगा। लेकिन सरकारी मीडिया का कहना है कि चीन के निवेशकों के लिए भारत की राह आसान नहीं होगी। चीन की कंपनियों को भारत में लेबर यूनियनों का सामना करना होगा, जो उन्हें अपने देश में नहीं करना होता है।

सरकारी ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत लगातार चीन से निवेश आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है। चीन की सरकार ने अपने यहां से भारत को सामान्य औद्योगिक हस्तांतरण का विरोध नहीं किया है।

रिपोर्ट में इन बातों पर भी दिया जोर

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती उभरती अर्थव्यवस्था है।
  • चीन के विनिर्माता इस तेजी से बढ़ते उपभोक्ता बाजार का लाभ उठाना चाहते हैं।
  • इसके अलावा चीन की अर्थव्यवस्था को दोनों पड़ोसियों के बीच नई आपसी उद्योग श्रृंखला से भी फायदा होगा।
  • इन तथ्यों को देखते हुए चीन सरकार अपनी कंपनियों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित नहीं करेगी।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में श्रमिक यूनियनों का कारपोरेट गवर्नेंस में दखल होता है।
  • वहीं चीन के उद्यमियों के पास मजबूत यूनियनों से निपटने का अनुभव नहीं है।

डॉलर के मुकाबले चीन की करेंसी 6 साल के निचले स्तर पर

  • चीन की मुद्रा युआन अमेरिकी डॉलर के मुकाबले छह वर्षो के निम्न स्तर पर चली गई है।
  • युआन की विनिमय दर में यह गिरावट चीन द्वारा निर्यात आय बढाने के लिए किए धीरे धीरे किए जा रहे मुद्रा के अवमूल्य का नतीजा है।
  • चीन की निर्यात आय में गिरावट हो रही है।
  • चीनी मुद्रा युआन की केन्द्रीय समानता दर 1.32 प्रतिशत घट कर 6.7690 युआन प्रति डॉलर पर आ गई है।
  • सितंबर 2010 के बाद युआन की यह सबसे कमजोर दर है।

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