शेयर बाजार के सिर से उतरा मोदी का बुखार, लेकिन उम्मीदें बरकरार
मोदी के भाषण सुनकर निवेशक इस विश्वास से लबरेज थे कि सरकार अर्थव्यवस्था की कायापलट कर देगी और कहीं आएं न आएं लेकिन शेयर बाजार में अच्छे दिन जरूरत आएंगे।
- बीते दो वर्षों से लगातार डबल डिजिट देने वाले भारतीय शेयर बाजार ने मोदी सरकार की दूसरी सालगिरह पर निवेशकों को निराश किया।
- बीते एक साल में सेंसेक्स की 30 कंपनियों में से 17 कंपनियों में निवेशकों ने पैसे गवाएं हैं।
- बीते एक साल में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े तमाम सेक्टर्स जैसे मेटल, रियल्टी और कैपिटल गुड्स में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिली।
- विशेषज्ञों के बीच एक मत इस बात को लेकर है कि मानसून अच्छा रहा तो शेयर बाजार को नई दिशा मिलेगी और अगले एक साल में बाजार फिर बेहतरीन रिटर्न दे सकते हैं।
नई दिल्ली:“नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार ने पिछले दो वर्षों में जो काम किया वह उम्मीद से काफी कम है। मेरे हिसाब से यह सरकार इससे बहुत बेहतर काम कर सकती थी।” यह झुंझलायी टिप्पणी 16 मई 2016 को सरकार के दो साल पूरे होने पर दलाल स्ट्रीट के एक बड़े शेयर बाजार विशेषज्ञ की थी। यह विशेषज्ञ भी तमाम देशवासियों और निवेशकों की तरह चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी के भाषण सुनकर और पहले साल में सरकारी स्कीमों की ताबड़तोड़ लॉन्चिंग देख इस विश्वास से लबरेज थे कि सरकार अर्थव्यवस्था की कायापलट कर देगी और कहीं आएं न आएं लेकिन शेयर बाजार में अच्छे दिन निश्चित तौर पर आ जाएंगे। लेकिन उम्मीदों का उबाल दो साल गुजरते-गुजरते ठंडा पड़ गया और शेयर बाजार के ताजा आंकड़ें भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
तस्वीरों में देखिए शेयर बाजार के पिछले दो वर्षों के रिटर्न
stock market return in last two months
शेयर बाजार ने किया निवेशकों को निराश
16 मई (एनडीए को प्रचंड बहुमत) की तारीख को अगर आधार मान लें तो बीते दो वर्षों से निवेशकों को डबल डिजिट रिटर्न देने वाले भारतीय शेयर बाजार ने इस साल निवशकों को निराश किया। 16 मई 2013 से 16 मई 2014 के दौरान निफ्टी ने 16.42 फीसदी और सेंसेक्स ने 18.90 फीसदी का रिटर्न दिया। यह वह समय था जब शेयर बाजार हर हफ्ते नरेंद्र मोदी के भाषणों को सुनकर गदगद हो छलांगे लगाता था और इस बात की तसदीक करता था कि एनडीए की सरकार बनते ही बाजार को पंख लग जाएंगे। सरकार बनी और पहले साल में ताबड़तोड़ स्कीमें लॉन्च की गईंं। सरकार के पहले साल के कार्यकाल (16 मई 2014 से 16 मई 2015) के दौरान निफ्टी ने फिर 14 फीसदी और सेंसेक्स ने 13 फीसदी का रिटर्न दिया। लेकिन दूसरे साल के कार्यकाल (16 मई 2015 से 16 मई 2016) के दौरान सरकार केवल बातों से बाजार को भरोसा दिलाने में नाकाम दिखी। जमीनी स्तर पर सरकार की स्कीमों का सरोकार न तो जनता से हुआ और न ही अर्थव्यवस्था के कायापलट की दिशा में कोई काम होता दिखा, जो निवेशकों को लुभा सके। बीते एक साल के दौरान प्रमुख सूचकांक निफ्टी में 4 फीसदी की गिरावट आई वहीं सेंसेक्स 6 फीसदी लुढ़क गया।
बीते एक साल में सेंसेक्स की 30 कंपनियों में से 17 कंपनियों में निवेशकों ने पैसे गवाएं हैं। वहीं कंज्यूूमर ड्यूरेबल और आईटी कंपनियों को छोड़ दिया जाए तो शेष बचे सभी इंडेक्स में पिछले एक साल के दौरान भारी बिकवाली देखने को मिली। मेटल, रियल्टी और कैपिटल गुड्स जैसे सेक्टर में तो यह गिरावट काफी गहरी रही और ये सेक्टर्स 20 फीसदी तक लुढ़क गए।
बाजार के विशेषज्ञों को भरोसा है कि अगर इस साल मानसून अच्छा रहा तो निश्चित तौर पर बाजार में खरीदारी लौटेगी और अगले एक साल में बाजार दोबारा डबल डिजिट में रिटर्न देते नजर आएंगे।
शेयर बाजार के सिर से उतरा मोदी का बुखार…
निवेश सलाहकार पिशुपति सुब्रामण्यन का मानना है कि निश्चित तौर पर सरकार पिछले दो वर्षों में बाजार की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। लेकिन अभी नरेंद्र मोदी पर बाजार और जनता का भरोसा कायम है। आने वाले दिनों में सरकार की नीतियों का असर जमीन पर दिखेगा और बाजार में निवेशकों के अच्छे दिन आएंगे। लंबे समय के लिए बैंकिंग शेयरों में निवेश करना एक फायदेमंद रणनीति साबित होगी।
… लेकिन उम्मीदें बरकरार
बाजार विशेषज्ञ अरुण केजरीवाल का मानना है कि बाजार की दिशा आने वाले दिनों में मानसून ही तय करेगा। अगर मानसून अच्छा रहता है तो निश्चित तौर पर आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कटौती देखने को मिल सकती है, जो बाजार के नजरिए से बेहद सकारात्मक होगा। अगले एक साल के नजरिए से बाजार में निवेश करना फायदेमंद होगा। बाजार निवेशकों को अगले एक साल में निश्चित तौर पर अच्छे रिटर्न देता नजर आएगा।
छोटी अवधि में बाजार की दिशा तय करेंगे ये फैक्टर्स
मिंट डायरेक्ट के रिसर्च हेड अविनाश गोरक्षकर का मानना है कि सरकार की नीतियों का असर अभी जमीन पर दिखना बाकी है। बीते दो वर्षों में शेयर बाजार का खराब प्रदर्शन इस बात का गवाह है। आने वाले कुछ दिनों में बाजार की चाल फेड की बैठक के आउटकम, राज्यों में बनने वाली सरकारों और मानसून जैसे फैक्टर्स पर निर्भर करेगी। शेयर बाजार में आने वाली हर गिरावट निश्चित तौर पर लंबे समय के लिए खरीदारी का मौका है।
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