भारत में वर्षों पहले से मौजूद इन स्टार्टअप्स की ओर नहीं है किसी का ध्यान, फंड के अभाव में तोड़ रहे हैं दम
भारतीय स्टार्टअप्स पिछले कुछ सालों से निवेशकों से मिले पैसे पर खूब तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। एंटरप्रेन्योर्स का एक ग्रुप फंड के लिए संघर्ष कर रहा है!
नई दिल्ली। भारतीय स्टार्टअप्स पिछले कुछ सालों से निवेशकों से मिले पैसे पर खूब तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन यहां एंटरप्रेन्योर्स का एक ग्रुप ऐसा भी है जो फंड के लिए संघर्ष कर रहा है और इसके अभाव में इनका कारोबार दम तोड़ रहा है। यह बिजनेस पर्सन न तो वेंचर कैपिटालिस्ट के रडार पर है औन न ही प्राइवेट इक्विटी प्लेयर्स की नजर इन पर अभी तक पड़ी है। ये एसे उद्यमी है जिनके पास न तो आईआईटी-आईआईएम का तमगा है और न ही सिलिकॉन वैली से लौटा कोई व्यक्ति उनसे जुड़ा है। बावजूद इसके इन छोटे उद्यमियों ने भारत में 11.14 करोड़ लोगों को रोजगार दिया हुआ है।
ये हैं भारत के पारंपरिक, गैर-लोकप्रिय एंटरप्रेन्योर्स: ज्वेलर्स, रेस्टॉरेंट्स संचालक, बुनकर और पुस्तक-विक्रेता सहित अन्य। यह माइक्रो, स्माल और मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) ग्रामीण और शहरी भारत में फैले हुए हैं। एशियन डेवलपमेंट बैंक इंस्टीट्यूट की एक ताजा सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एंटरप्रेन्योर्स पैसे के लिए औपचारिक चैनल जैसे बैंक की तुलना में अपनी व्यक्तिगत और परिवार की संपत्ति पर ज्यादा निर्भर हैं।
एशियन डेवलपमेंट बैंक इंस्टीट्यूट के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) बेंगलुरु के दो प्रोफेसर्स ने यह सर्वे बेंगलुरु और उसके आसपास किया, जिसमें 85 एमएसएमई को शामिल किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक लोन के बदले गारंटी मांगते हैं, अक्सर यह एंटरप्रेन्योर्स कोई गारंटी उपलब्ध नहीं करा पाते हैं। वहीं दूसरी ओर वेंचर कैपिटल फंड अधिकांश निवेश हाई-टेक व विघटनकारी स्टार्टअप्स में करते हैं।
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अशिक्षा है सबसे बड़ी कमजोरी
हालांकि, एमएसएमई के विपरीत अधिकांश टेक स्टार्टअप्स भी परिवार और दोस्तों या अपनी व्यक्तिगत बचत से मिले पैसे को सीड कैपिटल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, जिससे आगे उन्हें बाजार से फंड जुटाने में सफलता मिलती है। यहां सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है शिक्षा। उदाहरण के लिए, योरस्टोरी द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक 2015 के दो महीने की अवधि में स्टार्टअप्स द्वारा जुटाई गई सिरीज ए फंडिंग में 60 फीसदी राशि उन स्टार्टअप्स को मिली, जिनकी स्थापना आईआईटी या आईआईएम के छात्रों ने की थी। वहीं दूसरी ओर, एमएसएमई के अधिकांश संस्थापक ग्रेजुएट भी नहीं हैं।
छोटे हैं लेकिन महत्वपूर्ण हैं
इस सर्वे में बहुत छोटे कारोबार, मुश्किल से 10 करोड़ रुपए के निवेश वाले, को शामिल किया गया है, लेकिन यह भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। सर्वे के परिणामों में कहा गया है कि इन छोटे कारोबार में 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कार्यरत यह छोटी इकाईयां भारतीय जीडीपी में 7.7 फीसदी का योगदान देती हैं, जबकि सर्विस सेक्टर में कार्यरत छोटी इकाईयों का जीडीपी में योगदान 27.4 फीसदी है।
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इस सर्वे में विभिन्न चरणों के आधार पर बिजनेस का अध्ययन किया गया। यह चरण हैं स्टार्टअप, सर्वाइवल, ग्रोथ और ससटेंस। प्रत्येक चरण में अपनी-अपनी चुनौतियां हैं। उदहारण के लिए, स्टार्टअप चरण में उद्यमियों के पास लोन के लिए गारंटी के तौर पर कुछ नहीं होता है, वहीं उन्हें उपलब्ध स्कीमों की पर्याप्त जानकारी भी नहीं होती है। सर्वे में कहा गया है कि इन उद्यमियों को लोन आवेदन के लिए उच्च शुल्क जैसी परेशानी के साथ ही जरूरी दस्तावेजों को जुटाने जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। जो इकाईयां ग्रोथ चरण में हैं उन्हें ऊंची ब्याज दरों की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, भारत सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों पर इन छोटे एंटरप्रेन्योर्स को प्रोत्साहन देने का दबाव बनाया है, कई नई और विशेष योजनाओं को शुरू किया है, लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। आरबीआई ने माइक्रो और स्माल एंटरप्राइजेज को प्राथमिक क्षेत्र में रखा है, ताकि बैंक उन्हें प्राथमिकता के आधार पर लोन दे सकें। बावजूद इसके भारत के पारंपरिक एंटरप्रेन्योर्स को आसान फंड उपलब्ध कराने के लिए अभी भी लंबा सफर तय करना बाकी है।