एशिया में भारत की NPA समस्या सबसे खराब, 3 साल में बैड लोन बढ़कर हुआ 2.2 लाख करोड़ रुपए
एशिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से तुलना में भारत के सरकारी बैंकों की बैड लोन (एनपीए) की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।
नई दिल्ली। एशिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत के सरकारी बैंकों की बैड लोन (एनपीए) की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) द्वारा 3 मई को जारी रिपोर्ट के मुताबिक एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत में कुल (ग्रॉस) लोन में नॉन-परफॉर्मिंग एसेट का हिस्सा अन्य एशियन देशों की तुलना में सबसे ज्यादा है। कुल लोन के अनुपात में 6 फीसदी बैड लोन के साथ भारत इस मामले में चीन से आगे है, जहां केवल 1.5 फीसदी बैड लोन है। एक लोन तब नॉन-परफॉर्मिंग या बैड बनता है, जब कर्जदार मूलधन या उसके ब्याज का भुगतान करना बंद कर देता है।
बैड लोन के मामले में अन्य एशियन देशों की तुलना में भारत की स्थिति:
3 साल में सरकारी बैंकों का कॉरपोरेट एनपीए बढ़कर हुआ 2.2 लाख करोड़ रुपए
वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा संसद में दिए गए एक जवाब के मुताबिक पिछले तीन सालों में सरकारी बैंकों का कॉरपोरेट नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) वर्तमान में कुल कॉरपोरेट लोन का डबल से ज्यादा है। वित्त वर्ष 2012-13 में सरकारी बैंकों का कुल कॉरपोरेट लोन 24.11 लाख करोड़ रुपए था, जो वित्त वर्ष 2014-15 में बढ़कर 26.95 लाख करोड़ रुपए हो गया। वहीं इस दौरान वित्त वर्ष 2012-13 में बैड लोन 84,050 करोड़ रुपए से बढ़कर 2014-15 में 2,23,613 करोड़ रुपए हो गया। 2013 में बैड लोन जो कुल लोन का 3.49 फीसदी था, वह दिसंबर 2015 में बढ़कर 8.3 फीसदी हो गया। दिसंबर 2015 तक सरकारी बैंकों का कुल बैड लोन का आंकड़ा 4 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच चुका है। सरकारी बैंकों के कुल बैड लोन में 56 फीसदी हिस्सा कॉरपोरेट बैड लोन का है।
कैसे इस स्तर तक पहुंची ये समस्या
इसका उत्तर बहुत ही आसान है। 2008 के ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के दौरान कॉरपोरेट्स द्वारा पैसे के लिए दस्तक देने पर बैंक उनके लिए बहुत उदार हो गए। सरकारी बैंकों के चेयरमैन के बीच कुल बिजनेस फिगर के मामले में होड़ सी मच गई। ऐसे में सपंत्ति की गुणवत्ता पर कम ध्यान दिया गया और इससे क्रेडिट अप्रेजल प्रक्रिया का सही ढंग से पालन नहीं हो पाया। अनुमान के मुताबिक जब अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं आया तो कंपनियां बैंकों को धन लौटाने में देरी करने लगीं और बाद में उन्होंने भुगतान करना ही बंद कर दिया। बैड लोन के बोझ को कम करने के लिए बैंकों ने इस उम्मीद में कि कमजोर अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार आएगा, आक्रामक ढंग से लोन को रिस्ट्रक्चर्ड करना शुरू कर दिया, जिसका उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं निकला। एक-एक कर लोन एनपीए में बदलना शुरू हो गए।
विलफुल डिफॉल्टर्स से लोन की रिकवरी बहुत कठिन
इस समस्या का दूसरा पहलू बड़ी संख्या में विलफुल डिफॉल्टर्स का होना है। सामान्य डिफॉल्ट एकाउंट की तुलना में विलफुल डिफॉल्ट एकाउंट से रिकवरी करना बहुत ज्यादा कठिन होता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2012 से दिसंबर 2015 के बीच सरकारी बैंकों के विलफुल डिफॉल्टर्स की संख्या 5,554 से बढ़कर 7,686 हो गई है। इनके ऊपर बकाया कर्ज की रकम भी इस दौरान 27,749 करोड़ से बढ़कर 66,190 करोड़ रुपए हो गई है। विलफुल डिफॉल्टर्स वो होते हैं जिनके पास लोन लौटाने की क्षमता तो होती है, लेकिन इच्छाशक्ति नहीं होती।