नई दिल्ली। नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल ने बृहस्पतिवार को कहा कि देश में स्वास्थ्य क्षेत्र पर कुल मिलाकर खर्च कम है और इस स्थिति को ठीक करना जरूरी है। पॉल ने जोर दिया कि केंद्र तथा राज्य दोनों स्तर पर सरकारों को स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने के लिये अनुरोध किया जाए। उन्होंने कहा कि कोविड-19 का जो अनुभव है, उससे इस बात को बल दिया जा सकेगा। उन्होंने उद्योग मंडल सीआईआई के एक ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च कम है। संसाधनों की कमी है तथा कई और प्राथमिकताएं हैं। पर कुल मिलाकर स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कम है और इसे ठीक करने की जरूरत है।’’
पॉल ने कहा कि 2018-19 में देश का स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.5 प्रतिशत था। यह पिछले दशक के मुकाबले कुछ हद तक बेहतर है। पर निश्चित रूप से स्वास्थ्य क्षेत्र पर जीडीपी का 1.5 प्रतिशत खर्च संतोषजनक नहीं है। यूरोपीय देश स्वास्थ्य क्षेत्र पर जीडीपी का 7 से 8 प्रतिशत खर्च करते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) दस्तावेज का हवाला देते हुए पॉल ने कहा कि भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च 2025 तक जीडीपी का 3 प्रतिशत होना चाहिए उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी को केंद्र तथा राज्य सरकारों को स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने का आग्रह करने की जरूरत है।’’ कोविड-19 के अनुभव को देखते हुए स्वास्थ्य संबंधी ढांचागत सुविधाओं को मजबूत बनाने की जरूरत है। पॉल केंद्र सरकार के कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये किये जा रहे विभिन्न प्रयासों में समन्वय करने वाले प्रमुख अधिकारी हैं। उन्होंने कहा कि सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्यान दे सकती है जबकि निजी क्षेत्र को अपेक्षाकृत बड़े (सेकेंडरी) और विशेष इलाज वाले अस्पतालों तथा सुविधाओं पर गौर करना चाहिए। पॉल ने कहा कि बड़े अस्पताल और विशेष इलाज के क्षेत्र में विस्तार की काफी संभावना है। उन्होंने कहा कि पिछले छह साल में मेडिकल कॉलेज की संख्या में 45 प्रतिशत वृद्धि हुई है। स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर मेडिकल सीटों की संख्या में क्रमश: 48 प्रतिशत और 79 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पॉल ने कहा कि अगले तीन साल में 114 नये सरकारी अस्पताल बनेंगे।
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