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भारत की 41,000 करोड़ रुपए खर्च कर नए जंगल बनाने की योजना

मोदी सरकार भारत में हरित क्षेत्र बढ़ाने के लिए 41,000 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बना रही है। लोकसभा में प्रतिपूरक वनीकरण निधि विधेयक पास हो चुका है।

Afforestation: ग्‍लोबल वार्मिंग ने खोली आंखें, भारत की 41,000 करोड़ रुपए खर्च कर नए जंगल बनाने की योजना- India TV Paisa Afforestation: ग्‍लोबल वार्मिंग ने खोली आंखें, भारत की 41,000 करोड़ रुपए खर्च कर नए जंगल बनाने की योजना

नई दिल्‍ली। नरेंद्र मोदी सरकार भारत में हरित क्षेत्र बढ़ाने के लिए 41,000 करोड़ रुपए (6.2 अरब डॉलर) खर्च करने की योजना बना रही है। पिछले हफ्ते लोकसभा में प्रतिपूरक वनीकरण निधि विधेयक 2015 (Compensatory Afforestation Fund Bill, 2015) पास हो चुका है। इस प्रोजेक्‍ट का लक्ष्‍य भारत के वन क्षेत्र को वर्तमान में कुल जमीन के 21.34 फीसदी से बढ़ाकर 33 फीसदी करना है। इस विधेयक को अब राज्‍य सभा से पारित कराना शेष रह गया है।

कहां से आएगा पैसा

इस प्रोजेक्‍ट पर खर्च होने वाला धन उस शुल्‍क के जरिये आएगा, जिसे विभिन्‍न प्राइवेट कंपनियों और अन्‍य संस्‍थाओं ने 2006 से सरकार द्वारा उन्‍हें जंगल की जमीन पर प्रोजेक्‍ट लगाने के लिए मिली अनुमति के बदले चुकाया है। यह विधेयक पिछले साल लोक सभा में पेश किया गया था, इसमें यह प्रस्‍ताव है कि कुल आवश्‍यक धन का 90 फीसदी हिस्‍सा राज्‍य सरकार देगी, जबकि शेष 10 फीसदी हिस्‍सा केंद्र सरकार उपलब्‍ध कराएगी। 3 मई को लोकसभा में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि इस प्रोजेक्‍ट की मदद से हमारा वन क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ेगा और इसके परिणामस्‍वरूप हम अपने 33 फीसदी वन आच्‍छादित भूमि के लक्ष्‍य को हासिल कर पाएंगे। इतना ही नहीं बहुत महत्‍वपूर्ण भारत द्वारा इंटेंडेड नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्‍यूशन (आईएनडीसी) में कार्बन उत्‍सर्जन को कम कर 2.5 अरब टन करने का लक्ष्‍य हासिल करने में भी मदद मिलेगी।

विशेषज्ञों को है आशंका  

भू-वैज्ञानिक और एनवारंस ट्रस्‍ट नामक एनजीओ के मैनेजमेंट ट्रस्‍टी श्रीधर राममूर्ति को इस प्रोजेक्‍ट के सफल होने पर शंका है। उनका कहना है कि यहां एक निगरानी तंत्र होना चाहिए जो यह सुनिश्चित करे की इस धन का उपयोग सही ढंग से हो रहा है। कई बार देखा गया है कि जब वन अधिकारियों पर उनके लक्ष्‍य को लेकर दवाब बनाया जाता है तो वह स्‍वयं जंगलों में आग लगाकर यह शिकायत करते हैं कि उनका काम आग में नष्‍ट हो गया। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के प्रोग्राम मैनेजर, वानिकी, अजय कुमार सक्‍सेना का कहना है कि अथॉरिटी की स्‍थापना से वन भूमि पर कोई प्रभाव नहीं होगा। पूर्व में पहले ही बहुत सी वन भूमि को प्रभावित किया जा चुका है और जो नुकसान हुआ है हम उसकी भरपाई नहीं कर सकते।

सरकार कैसे करेगी यह काम

यहां यह भी बड़ी चिंता है कि वास्‍तव में सरकार कैसे वैकल्पिक जमीन पर जंगलों का विकास करेगी। सीएसई के अध्‍ययन के मुताबिक 1980 के बाद से पर्यावरण मंत्रालय 12.9 लाख हेक्‍टेयर वन भूमि को गैर-वानिकी उद्देश्‍यों के लिए डायवर्जन को मंजूरी दे चुका है। 2013 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भी यह कहा गया है कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा वन क्षेत्र को इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर प्रोजेक्‍ट के लिए डायवर्ट करने के बावजूद वह वैकल्पिक जमीन पर वन उगाने में असफल रहा है। रिपोर्ट में ऑडिटर ने कहा है कि वन भूमि के डायवर्जन में अनियमितता हुई है और प्रतिपूरक वानिकी को बढ़ावा देने में घोर विफलता रही और खनन के मामलों में अनाधिकृत ढंग से वन भूमि का डायवर्जन किया गया।

प्रतिपूरक वानिका का अर्थ यह है कि जितनी जंगल की जमीन दी गई है, उसी के बराबर गैर-वानिकी जमीन पर नए जंगलों का विकास किया जाए। इसके लिए सरकार को जमीन देनी होती है। पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 1,03,381.91 हेक्‍टेयर गैर-वानिकी जमीन के बदले 2006-12 तक केवल 28,086 हेक्‍टेयर जमीन ही सरकार ने प्रतिपूरक वानिकी के लिए उपलब्‍ध कराई है, जो कि केवल 27 फीसदी होता है। इसमें भी केवल 7,280.84 हेक्‍टयेर में जंगलों का विकास किया जा सका है, जो कुल प्राप्‍त गैर-वानिकी जमीन का 7 फीसदी है। राममूर्ति कहते हैं कि यहां यह बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट नहीं है कि सरकार कैसे इन नए जंगलों का विकास करेगी। क्‍या नए जंगल विकसित करने के लिए लोगों से उनकी जमीन छीनकर उन्‍हें दूर किया जाएगा? यदि ऐसा है, तो सरकार क्‍यों पहले जंगलों की जमीन को कारोबारी उद्देश्‍य के लिए देती है। यह तो एक तरह से दोहरी मार होगी।

Source: Quartz

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