भारत के पास अमेरिकी कंपनियों को आकर्षित करने की क्षमता, मगर बढ़ाना होगा मैन्युफैक्चरिंग आधार
अमेरिकी कंपनियों की चीन से अपना कारोबार पूरी तरह समाप्त करने की संभावना बहुत कम है लेकिन अगर ऐसा होता है तो भारत को मैन्युफैक्चरिंग कारोबार का एक मोटा हिस्सा मिल सकता है।
लखनऊ। कोरोना महामारी को लेकर अमेरिका और चीन के बीच जारी तनातनी के इस दौर में अमेरिका के एक प्रमुख उद्योगपति ने कहा है कि भारत में अमेरिकी कंपनियों को आकर्षित करने की क्षमता है लेकिन उसे अपना मैन्युफैक्चरिंग बेस और मजबूत करना होगा। भारतीय मूल के अमेरिकी उद्योगपति फ्रैंक इस्लाम ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका की चीन से नाराजगी और वहां से अपना कारोबार समेटने की चेतावनी में भारत अपने लिए संभावनाएं देख रहा है। अगर अमेरिकी कंपनियां चीन से अपना कारोबार समेटती हैं तो इसका फायदा निश्चित रूप से भारत को भी मिलेगा।
उन्होंने कहा कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्माणकर्ता देश है और वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग में उसकी हिस्सेदारी 20 प्रतिशत है। हालांकि अमेरिकी कंपनियों की चीन से अपना कारोबार पूरी तरह समाप्त करने की संभावना बहुत कम है लेकिन अगर ऐसा होता है तो भारत को मैन्युफैक्चरिंग कारोबार का एक मोटा हिस्सा मिल सकता है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के मूल निवासी इस्लाम ने कहा कि भारत में दुनिया का सूचना प्रौद्योगिकी हब बनने के लायक मूलभूत ढांचा और माहौल है लेकिन उसका मैन्युफैक्चरिंग बेस उतना मजबूत नहीं है। भारत अमेरिका की आईटी कंपनियों को अपने यहां निवेश के लिए आकर्षित कर सकता है।
अमेरिका के प्रतिष्ठित एफ.आई. इन्वेस्टमेंट ग्रुप के चेयरमैन और सीईओ ने कहा कि कोई भी कंपनी लाभ और हानि को देखकर ही कोई फैसला करती है। भारत को चीन से अमेरिका की नाराजगी का कुछ लाभ निश्चित रूप से मिलेगा। उन्होंने कहा कि भारत के लिए अपना मैन्युफैक्चरिंग आधार मजबूत करना बेहद जरूरी है। इस वक्त वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग उत्पाद में भारत की हिस्सेदारी मात्र 3 प्रतिशत है। भारत को अपनी अर्थव्यवस्था मैं सुधार करने होंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा विदेशी निवेश हासिल हो और उसका मूलभूत ढांचा मजबूत हो।
उम्मीद है कि चीन से कारोबार समेटने वाली अमेरिकी कम्पनियां भारत को अपने अगले गंतव्य के तौर पर चुनेंगी। खासकर उत्तर प्रदेश सरकार ने चीन से अमेरिकी कंपनियों को अपने यहां लाने की संभावनाएं तलाशने के लिए विशेष पैकेज तैयार करने के निर्देश अधिकारियों को दिये हैं। उत्तर प्रदेश के एमएसएमई मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने पिछले दिनों अमेरिकी कंपनियों के साथ वेबिनार चर्चा के बाद कहा था कि अनेक अमेरिकी कंपनियां उत्तर प्रदेश में निवेश की इच्छुक हैं। इस्लाम ने कहा कि अगर अमेरिकी कंपनियां चीन से अपना कारोबार समेटती हैं तो यह निश्चित रूप से चीन के लिए बड़ा झटका होगा। हालांकि चीन का घरेलू बाजार भी विशाल है।
चीनी कंपनियां यूरोप, पश्चिम एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के बाजारों में अरबों डॉलर का सामान बेचती हैं। अगर चीन अमेरिकी कंपनियों को खो देता है तो भी उसकी अर्थव्यवस्था पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने एक सवाल पर कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन और अमेरिका की कुल हिस्सेदारी करीब 41 प्रतिशत है। अगर इन दोनों के बीच गंभीर टकराव हुआ तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा।