FY17 में GDP ग्रोथ 7.9 फीसदी रहने का अनुमान, वैश्विक जोखिम की चपेट में आ सकता है शेयर बाजार
घरेलू रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का मानना है कि देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ग्रोथ दर अगले वित्त वर्ष में 7.9 फीसदी रह सकती है
नई दिल्ली। शुक्रवार को दो प्रमुख रेटिंग एजेंसियों की रिपोर्ट आईं। एक रिपोर्ट जीडीपी ग्रोथ को बढ़ने का अनुमान जता रही है तो दूसरी रिपोर्ट भारतीय शेयर बाजारों के वैश्विक जोखिम में फंसने का संकेत दे रही है।
2016-17 में जीडीपी ग्रोथ 7.9 प्रतिशत रहने का अनुमान
घरेलू रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का मानना है कि देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष में 7.9 फीसदी रह सकती है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि मानसून सामान्य हो और सरकार अब तक घोषित सुधार उपायों को क्रियान्वित करे। यह सरकार के 7.7 से 7.5 फीसदी वृद्धि दर के अनुमान से भी ज्यादा है।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने कहा कि कृषि में तीव वृद्धि का अनुमान लगाते हुए वृद्धि दर का यह आंकड़ा निकाला गया है। उन्होंने कहा कि लगातार तीन वर्षों तक मौसम अनुकूल नहीं रहा। वर्ष 2014 और 2015 में मानसून से सामान्य से कम रहा और इस साल सामान्य मानसून से कृषि में 4.0 फीसदी वृद्धि हो सकती है। इसका कारण पिछले साल कम वृद्धि दर (बेस इफेक्ट) है।
हालांकि उन्होंने बैंकिंग मोर्चे पर चिंता जताई और कहा कि सुधारों के क्रियान्वयन से अर्थव्यवस्था को अधिक वृद्धि दर हासिल करने में मदद मिलनी चाहिए।
वैश्विक जोखिम की चपेट में आ सकते हैं भारतीय बाजार
भारतीय बाजार वैश्विक जोखिम के कारण इसकी चपेट में आ सकता है और जबतक कंपनियों के वित्तीय परिणाम बेहतर नहीं होते देश निवेशकों की नजर से दूर हो सकता है। नोमुरा की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। जापान की वित्तीय सेवा इकाई ने कहा कि भारतीय बाजार के लिए सबसे बड़ी चिंता उच्च मूल्यांकन है।
नोमुरा ने एक शोध रिपोर्ट में कहा, हमारा मानना है कि वैश्विक जोखिम का खतरा भारतीय बाजार पर बना रहेगा और जबतक कंपनियों के वित्तीय परिणाम बेहतर नहीं होते देश निवेशकों की नजर से दूर हो सकता है। इसमें कहा गया है, हम भारत में निवेश हल्का रखे जाने के दृष्टिकोण पर कायम हैं। वैश्विक ब्रोकरेज कंपनी ने कहा कि भारतीय शेयर बाजार के लिए सबसे बड़ी चिंता उच्च मूल्यांकन, अवास्तविक आय वृद्धि तथा सुधारों से अत्यधिक अपेक्षा है। उल्लेखनीय है कि वैश्विक आर्थिक नरमी की आशंका, कच्चे तेल के दाम में नरमी, चीनी अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता तथा कंपनियों के हल्के वित्तीय परिणाम जैसे कारणों से भारतीय शेयर बाजारों में गिरावट देखी गई है।