निर्यात में सुधार के संकेत लेकिन श्रमबल की कमी से मुश्किलें जारी: FIEO
निर्यातकों को नवंबर तक महामारी से पहले की स्थिति तक पहुंचने की उम्मीद
नई दिल्ली। निर्यातकों का मानना है कि देश से वस्तुओं का निर्यात आगामी महीनों में और सुधरेगा। हालांकि, उद्योग को अभी श्रमबल की कमी के संकट से जूझना पड़ रहा है। निर्यातकों के प्रमुख संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) का कहना है कि ऑर्डर बुक में सुधार दिख रहा है। फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि छोटी अवधि में ऑर्डर में कोई समस्या नहीं है, लेकिन निर्यातकों को अभी लंबी अवधि के ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। सहाय ने कहा, ‘‘ऑर्डर बुक की स्थिति सुधर रही है। ऐसे में हमें उम्मीद है कि स्थिति और सुधरेगी। अभी मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोपीय देशों से ऑर्डर मिल रहे हैं।’’ श्रमबल के संकट पर उन्होंने कहा कि कारखाने अब भी पूरी क्षमता पर काम नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन अगले कुछ माह में स्थिति सुधरेगी।
चमड़ा निर्यात परिषद के चेयरमैन पी आर अकील ने कहा कि क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। ‘‘हमारी ऑर्डर बुक सुधर रही है।’’ कुछ इसी तरह की राय जताते हुए परिधान निर्यात संवर्द्धन परिषद (एईपीसी) के चेयरमैन ए शक्तिवेल ने कहा कि भारतीय सामानों को लेकर सकारात्मक धारणा है। इससे हमें निर्यात सुधारने में मदद मिल रही है। शक्तिवेल ने कहा, ‘‘ऑर्डर आ रहे हैं। इस साल हम उम्मीद कर रहे हैं कि निर्यात में उल्लेखनीय सुधार दर्ज कर सकेंगे। कारखाने अभी 60 प्रतिशत क्षमता पर परिचालन कर रहे हैं। नवंबर तक हम कोविड-19 से पूर्व के स्तर पर पहुंच जाएंगे।’’
लुधियाना के हैंड टूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एस सी रल्हन ने कहा कि इंजीनियरिंग निर्यातकों के पास अच्छे ऑर्डर हैं। लेकिन श्रमबल की कमी की वजह से हमें समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अभी सिर्फ 50 प्रतिशत श्रमिक कारखाने में आ रहे हैं। इस वजह से हम उत्पादन नहीं बढ़ा पा रहे हैं। हस्तशिल्प निर्यात संवर्द्धन परिषद (ईपीसीएच) के कार्यकारी निदेशक राकेश कुमार ने कहा कि ऑर्डर आ रहे हैं, लेकिन श्रमिकों की कमी की वजह से उत्पादन बढ़ाने में दिक्कत आ रही है। उन्होंने सरकार से भारत से वस्तुओं के निर्यात की योजना (एमईआईएस) से संबंधित मुद्दों का समाधान करने की अपील की। उन्होंने कहा कि इस वजह से निर्यातक अपने उत्पादों का मूल्य तय नहीं कर पा रहे हैं। कुमार ने कहा, ‘‘एमईआईएस से निर्यातकों की मूल्य को लेकर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता बढ़ती है। लेकिन योजना को लेकर असमंजस की वजह से निर्यातक नए ऑर्डरों के लिए कीमत तय नहीं कर पा रहे हैं।’’