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Hindi News पैसा बिज़नेस आयात के सहारे पक रहा है भारतीय रसोई में खाना, कुल खपत होने वाले 230 लाख टन तेल में सिर्फ 80 लाख टन है स्‍वदेशी

आयात के सहारे पक रहा है भारतीय रसोई में खाना, कुल खपत होने वाले 230 लाख टन तेल में सिर्फ 80 लाख टन है स्‍वदेशी

2018-19 में आयात हुए 149.13 लाख टन खाने के तेल में 94.09 लाख टन पाम तेल है जबकि 30.94 लाख टन सोयाबीन तेल और 23.51 लाख टन सूरजमुखी तेल है।

India edible oil demand supply import and domestic production- India TV Paisa India edible oil demand supply import and domestic production

नई दिल्‍ली। खाने के तेल की जरूरत को पूरा करने के लिए देश को आत्मनिर्भर बनने की कितनी जरूरत है इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि हमें अपनी जरूरत पूरा करने के लिए विदेशों से हर साल 65 प्रतिशत तेल आयात करना पड़ता है। देश को खाने के तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार किसानों को प्रोत्साहित भी कर रही है, लेकिन सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद नतीजे बहुत सकारात्मक नहीं आए हैं। अभी भी खाने के तेल की जरूरत को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भरता ज्यादा है।

खाने के तेल की जरूरत को पूरा करने के लिए हर महीने देश को लगभग 19 लाख टन तेल की जरूरत होती है, यानि सालभर में लगभग 225-230 लाख टन खाने के तेल की जरूरत पड़ती है। इस जरूरत का लगभग 65 प्रतिशत यानि करीब 150 लाख टन विदेशों से आयात करना पड़ता है और बाकी तेल यानि 75-80 लाख टन घरेलू स्तर पर पैदा होने वाले तिलहन से निकाला जाता है।

यानि जितना खाने का तेल घरेलू स्तर पर पैदा किया जाता है उससे दोगुना विदेशों से आयात करना पड़ रहा है। इस साल अक्तूबर में खत्म हुए ऑयल वर्ष 2018-19 (नवंबर से अक्तूबर) के दौरान देश में कुल 155.49 लाख टन वनस्पति तेल आयात हुआ है जिसमें 149.13 लाख टन खाने का तेल है। ऑयल वर्ष 2017-18 के दौरान देश में कुल 150.26 लाख टन वनस्पति तेल आयात हुआ था जिसमें 145.16 लाख टन खाने का वनस्पति तेल था।

आयात होने वाले खाने के तेल की बात करें तो उसमें भी 60-65 प्रतिशत हिस्सेदारी पाम तेल की होती है। 2018-19 में आयात हुए 149.13 लाख टन खाने के तेल में 94.09 लाख टन पाम तेल है जबकि 30.94 लाख टन सोयाबीन तेल और 23.51 लाख टन सूरजमुखी तेल है। हमारे देश में पाम का उत्पादन नहीं होता है और यह अन्य वनस्पति तेलों के मुकाबले सबसे सस्ता भी होता है, ऐसे में इसका आयात अन्य तेलों के मुकाबले अधिक होता है।

विदेशों से जो खाने का तेल आयात होता है उसको आयात करने के लिए बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है। इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता है और घरेलू करेंसी रुपया भी डॉलर के मुकाबले कमजोर होता है।  

हमारे देश में जो तिलहन पैदा होते हैं उनमें मुख्य तौर पर सरसों, सोयाबीन और मूंगफली हैं, इनके अलावा तिल और सूरजमुखी का भी थोड़ा बहुत उत्पादन होता है। कई जगहों पर कपास के बीज बिनौले से निकले तेल का भी खाने के तेल के तौर पर इस्तेमाल होता है। लेकिन सालभर में कुल मिलाकर देश में 300-325 लाख टन तिलहन पैदा हो पाता है जिसमें से 75-80 लाख टन ही खाने का तेल मिल पाता है।

किसानों को तिलहन की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हाल के कुछ वर्षों में सरकार की तरफ से कई प्रयास किए गए हैं, प्रमुख तिलहनों का समर्थन मूल्य बढ़ाया गया है और बढ़े हुए समर्थन मूल्य पर किसानों से तिलहन खरीद भी बढ़ाई गई है, लेकिन इस दिशा में युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है। देश में कृषि योग्य भूमी भी सीमित मात्रा में है। सरकार को पहले कृषि योग्य भूमी का दायरा बढ़ाकर किसानों को तिलहन की खेती की तरफ तेजी से प्रोत्साहित करने की जरूरत है और फिर किसानों के पैदा किए तिलहन की खरीद प्रक्रिया को भी बढ़ाने की जरूरत है। इस दिशा में देश के तिलहन उद्योग की मदद भी ली जा सकती है।

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