अर्थव्यवस्था के प्रभावित सेक्टर के लिए दूसरे राहत पैकेज पर विचार करे सरकार: SBI
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक शेयर बाजार में बढ़त का मतलब अर्थव्यवस्था में बढ़त नहीं
नई दिल्ली। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अर्थशास्त्रियों का अर्थव्यवस्था के प्रभावित क्षेत्रों के लिये दूसरे दौर के वित्तीय समर्थन पर जोर दिया है। उन्होंने चेतावनी देते हुये भी कहा है कि सितंबर के बाद जब कर्ज वापसी पर लगी छह माह की रोक अवधि समाप्त हो जायेगी तब बैंक गैर- निष्पादित राशि (एनपीए) के बढ़े हुये आंकड़े जारी कर सकते हैं।
अर्थशास्त्रियों ने एक नोट में कहा है कि तेजी से चढते बाजार और आर्थिक स्थिति में सुधार के बीच कमजोर जुड़ाव दिखाई देता है। यह जो स्थिति दिखाई दे रही है वह मोटे तौर पर ‘‘अतार्किक उत्साह’’ ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि बाजार में आ रही तेजी के पीछे रिजर्व बैंक द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सरल नकदी का भी योगदान हो सकता है। अर्थशास्त्रियों ने कहा, ‘‘बाजार यदि अच्छे हैं तो इसका मतलब बेहतर अर्थव्यवस्था नहीं हो सकता है।’’
अर्थशास्त्री यह भी बताने का प्रयास कर रहे हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के लिये भारत केवल कृषि क्षेत्र की बेहतरी पर ही निर्भर नहीं रह सकता है। उनका मानना है कि यदि कृषि क्षेत्र में 1951- 52 में हासिल 15.6 प्रतिशत का सबसे बेहतर प्रदर्शन भी हासिल किया जाता है तब भी जीडीपी में 2 प्रतिशत अंक की ही वृद्धि होगी। नोट में उन्होंने कहा है, ‘‘हमें कम से कम प्रभावित क्षेत्रों को समर्थन देने के लिये दूसरे दौर के वित्तीय समर्थन के बारे में सोचना चाहिये।’’ उल्लेखनीय है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिये 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा पहले ही कर दी है, लेकिन इसमें वास्तविक वित्तीय खर्च पैकेज का मात्र 10वां हिस्सा ही है।
इसमें कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान उपभोक्ता के व्यवहार में रुचिकर बदलाव आया है। इसका भारतीय बैंकिंग प्रणाली के लिये व्यापक सकारात्मक प्रभाव हो सकता है। इस दौरान प्रति क्रेडिट कार्ड अथवा डेबिट कार्ड लेनदेन में कमी आई है। इस दौरान उपभोक्ताओं का लेनदेन लक्जरी सामानों के बजाये केवल दैनिक आवश्यक वस्तुओं तक ही सीमित रहा है। इस दौरान क्रेडिट कार्ड के मामले में प्रति कार्ड लेनदेन 12 हजार रुपये से घटकर 3,600 रुपये रह गया जबकि डेबिट कार्ड से लेनदेन एक हजार से घटकर 350 रुपये रह गया। इसका आने वाले समय में बैंकों के एनपीए पर असर पड़ सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि बाद में परिवार के लोग सोने के बदले उधार लेना शुरू कर देंगे और यदि यह रूझान बढ़ता है कि बैंकों के सुरक्षित कर्ज का प्रतिशत बढ़ सकता है।