नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को कहा कि ऋण शोधन एवं दिवला संहिता (आईबीसी) में संशोधन से रियल एस्टेट क्षेत्र में धन जुटाकर रातों रात गायब होने वाली गैर-जिम्मेदाराना कंपनियों पर लगाम लगेगी और परियोजनाएं समय पर पूरी होंगी।
इस सप्ताह की शुरुआत में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ऋण शोधन एवं दिवाला संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2018 जारी करने को मंजूरी दी। इसमें ऋण शोधन कार्यवाही के तहत रियल एस्टेट परियोजनाओं के मकान खरीदारों को वित्तीय कर्जदाता के रूप में मान्यता देने का प्रावधान किया गया है। जेटली ने कहा कि अध्यादेश के जरिये लाए गए संशोधन से रियल एस्टेट क्षेत्र को संगठित रूप देने में मदद मिलेगी।
फेसबुक पर डाले पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि जमीन-जायदाद क्षेत्र में मजबूत और संरचित कंपनियां बनी रहेंगी। वहीं धन जुटाकर रातों रात गायब होने वाली कंपनियों का सफाया होगा। परियोजनाएं उपयुक्त समय पर पूरी होंगी और निवेशकों को उनका आवंटन हिस्सा शीघ्रता से मिलेगा।
जेटली ने कहा कि निर्माण क्षेत्र में दहाई अंक में वृद्धि हो रही है और रियल एस्टेट नियामक रेरा और नया अध्यादेश इस पूरी प्रक्रिया को और मजबूत बनाएगा। उन्होंने कहा कि अध्यादेश में मकान खरीदारों को परियोजना के वित्तीय कर्जदाता के समान मना गया है। जेटली ने कहा कि मकान खरीदार अब आवासीय योजना में गड़बड़ी करने वाली कंपनी के खिलाफ ऋण शोधन की कार्यवाही शुरू कर सकते हैं। उन्हें कर्जदाताओं की समिति में होने का अधिकार मिला है। उन्हें मतदान का अधिकार मिला है। वह समाधान प्रक्रिया में भी हस्तक्षेप कर सकते हैं। अगर परियोजना का समापन होता है तो ऐसी स्थिति में उनकी हैसियत वित्तीय कर्जदाता यानी बिल्डर को कर्ज देने वाले बैंकों के समकक्ष होगी।
उन्होंने कहा देश में कई बड़े टाउनशपि बन रहे हैं और इनमें से कइ्यों का विकास पेशेवर रियल एस्टेट कंपनियां कर रही हैं। हालांकि इसमें रातों रात मुनाफा कमाकर फरार होने वाली कई कंपनियां भी आ गई हैं, जिनके पास अपने संसाधन बहुत कम हैं।
जेटली ने कहा कि गड़बड़ी वाली आवासीय परियोजनाओं में आम घर खरीदार को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। गैर-जिम्मेदाराना डेवलपर उनसे धन जुटाकर उसे भूमि बैंक बनाने में लगा देते हैं और उसके बाद खुद ऋण जाल में फंस जाते हैं। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा आम घर खरीदार को भुगतना पड़ता है। वह तीन तरफ से घिर जाता है। अपनी पूरी बचत वह आवासीय परियोजना में लगा देता है। मकान के लिए जो कर्ज लिया है उस पर मासिक किस्त का भुगतान करना पड़ता है, हो सकता है वह वर्तमान आवास के लिए किराया भी भर रहा हो या मजबूरी में किसी वैकल्पिक स्थान पर रह रहा हो। ऐसी कई दिक्कतें उसके सामने होती हैं।
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