एक समय था जब 5,000 रुपए के लिए दर-दर भटकते थे, आज हैं भारत के 14वें सबसे अमीर आदमी
नई दिल्ली। एक समय था जब भारत का ये 14वां सबसे अमीर आदमी भारी वित्तीय संकट में था और 5,000 रुपए के लिए दर-दर भटकना पड़ता था। साइकिल पाट्र्स बनाने का बिजनेस करने वाले सुनील मित्तल आज अपनी टेलीकॉम कंपनी भारती एयरटेल की दम पर पूरी दुनिया में नाम और पैसा कमा रहे हैं। फोर्ब्स की 2017 के लिए जारी भारत के शीर्ष 100 अमीरों की सूची में सुनील मित्तल को 8.3 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ 14वें स्थान पर रखा गया है।
एक कार्यक्रम में अपने पुराने दिनों को याद करते हुए सुनील मित्तल ने बताया कि यह वह समय था जब लोग लेनदेन के लिए चेक का इस्तेमाल नहीं करते थे। इसलिए हमारे बैंक एकाउंट में भी पैसे नहीं होते थे, जिससे हम किसी को चेक दे सकें। मित्तल ने बताया कि मैं एक बार हीरो मोटोकॉर्प के संस्थापक बृजमोहन लाल मुंजाल के पास गया और उन्हें 5,000 रुपए का चेक बनाने का आग्रह किया। उन्होंने इसके लिए तुरंत हामी भर दी। जब मैं वहां से जाने लगा तो उन्होंने मुझसे एक बात कही जो मेरे दिल को छू गई। उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा इसकी आदत मत डालना। उनकी सलाह को मानकर मैंने काम करना शुरू किया। इस सलाह के बाद से मुझे कभी पैसे की तंगी का सामना नहीं करना पड़ा।
1980 के बाद सुनील भारती मित्तल ने अपना कारोबारी साम्राज्य खड़ा करना शुरू कर दिया था। मित्तल ने अपनी चुनौतीभरी यात्रा और हमेशा आगे बढ़ते रहने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताया। मित्तल ने बताया कि सरकार द्वारा पोर्टेबल जनरेटर सेट के इंपोर्ट पर रोक लगाने से उन्हें अपना टेलीकम्यूनिकेशन बिजनेस स्थापित करने का आइडिया आया। उस समय मित्तल जापान की कंपनी सुजुकी के भारत में पहले डीलर थे जो भारत में पोर्टेबल जनरेटर सेट बेचा करते थे।
यह बिजनेस बहुत जल्द ही बहुत बढ़ने लगा जिसने राजनीति से जुड़े लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा और वे लाइसेंस के लिए सरकार से लॉबिंग करने लगे। मित्तल ने बताया कि उस समय पोर्टेबल जेनसेट के हम सबसे बड़े इंपोर्टर थे और यह बहुत ही मुनाफे वाला बिजनेस था। हमारा एक बड़ा दफ्तर था जहां कई लोग काम करते थे। उस समय मैं टेलीकम्यूनिकेशन के बारे में कुछ भी नहीं जानता था।
जनरेटर बिजनेस बंद होने के बाद मित्तल ने बिजनेस के नए अवसर तलाशने के लिए विदेश का दौरा किया। वह ताईवान गए, जहां उन्होंने पुश-बटन फोन को देखा, उस समय भारत में रोटरी फोन का इस्तेमाल होता था। तब मेरे दिमाग में पुश-बटन फोन भारत में लाने का विचार आया। जल्द ही सरकार टेलीकम्यूनिकेशंस के लिए लाइसेंसिंग पॉलिसी लेकर आई और मित्तल ने इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। उन्होंने मित्तब्रॉ नाम से पुश-बटन बनाना शुरू किया। विदेशी कंवपी की तरह लगने वाले नाम को रखने की वजह उन्होंने बताई कि उस वक्त देश में विदेशी कंपनियों का काफी आकर्षण था।