Treat Fairly: होम डेवलपर्स करेंगे खरीदारों के साथ निष्पक्ष व्यवहार, तभी आएगा भारत के रियल एस्टेट सेक्टर में सुधार
यहां ऐसे बहुत से कदम हैं, जिन्हें उठाकर रियल एस्टेट डेवलपर्स ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर दोबारा डिमांड पैदा कर सकते हैं।
नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पिछले 12 महीनों के दौरान रेपो रेट में 125 आधार अंकों की कटौती कर चुका है।बावजूद इसके रियल एस्टेट सेक्टर की सेहत में कोई सुधार नहीं आया है। यहां ऐसे बहुत से कदम हैं, जिन्हें उठाकर बिल्डर्स ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर दोबारा डिमांड पैदा कर सकते हैं। डिमांड बढ़ाने का सबसे अच्छा समाधान होगा कि घरों की कीमतें कम की जाएं। हालांकि जमीन की बढ़ती कीमत और अन्य कंस्ट्रक्शन कॉस्ट की वजह से इससे अधिकांश रियल एस्टेट डेवलपर्स सहमत नहीं होंगे। तो यहां अन्य सुझाव भी हैं जो ग्राहकों को वापस बाजार में लोकर रियल्टी डिमांड में सुधार ला सकते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कुल लोन में से 20 फीसदी डायरेक्ट और इनडायरेक्ट तौर पर रियल सेक्टर से जुड़ा हुआ है। ब्याज दर कम होने के बावजूद देश के रियल्टी डिमांड में कोई सुधार नहीं आया है। पजेशन मिलने में देरी, कारपेट एरिया में हेरफेर, कंस्ट्रक्शन की खराब क्वालिटी और बड़े पैमाने पर ब्लैकमनी का उपयोग जैसे मुद्दों की वजह से शहरों में अनसोल्ड प्रॉपर्टी की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। बेईमान बिल्डर्स और ब्रोकर्स के लिए एक मजबूत हाउसिंग रेगूलेटर की मांग जोर पकड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने हाल ही में हाउसिंग रेगूलेटर बिल को मंजूरी दी है। यदि ये बिल संसद द्वारा पास हो जाता है तो उपभोक्ता के साथ धोखाधड़ी करने और समझौते की शर्तों का तोड़ने पर बिल्डर या ब्रोकर को जेल की सजा हो सकती है। सरकार रियल्टी कंपनियों के लिए रेगूलेटरी प्रक्रिया को आसान बनाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती। ऐसे में ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए स्वयं कंपनियों को ही कदम उठाने होंगे।
वन साइडेड कॉन्ट्रैक्टस को कहें अलविदा
कई घर खरीदार नियामकीय मंजूरियां मिलने में होने वाली देरी का खामियाजा ईएमआई और किराया देकर भुगत रहे हैं, क्योंकि बिल्डर्स ने उनके साथ एक तरफा कॉन्ट्रैक्ट किया है। अधिकांश बिल्डर्स ने पजेशन में देरी होने पर दिए जाने वाले पेनाल्टी पेमेंट की सीमा 5 रुपए से 10 रुपए प्रति वर्ग फुट तय कर रखी है। इसे स्वेच्छा से बदला जाना चाहिए। कॉन्ट्रैक्ट ऐसा होना चाहिए कि दोनों पार्टियों- होम सेलर्स और होम बायर्स- पर पजेशन या पेमेंट में देरी के लिए समान पेनाल्टी का प्रावधान हो। इससे भरोसा बढ़ेगा और संभावित होम बायर्स अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी खरीदने पर विचार करेगा। इससे रियल्टी कंपनियों को इंटरेस्ट फ्री कैपिटल मिलने का भी रास्ता खुलेगा, जिसके लिए ये कंपनियां सालाना 20 फीसदी ब्याज पर असुरक्षित डेट पेपर, हीरा व्यापारी और प्राइवेट इक्विटी कंपनियों के आगे हाथ फैलाती हैं।
पजेशन डेट के लिए बनें ईमानदार
यदि बिल्डर्स तीन साल में पजेशन नहीं दे सकता और उसे ऐसा करने में वास्तव में छह साल लगेंगे, तब उसे ईमानदारी से घर खरीदार और निवेशक को वास्तविक पजेशन डेट बताना चाहिए, ताकि खरीदार और निवेशक उसी प्रकार अपनी योजना बना सकें। भारत एक ऐसा देश है, जहां घर खरीदना एक सपना होता है, यहां ऐसे कुछ ग्राहक हो सकते हैं जो घर खरीदना चाहेंगे और उन्हें तुरंत पजेशन की भी कोई आवश्यकता नहीं होगी। यदि डेवलपर्स कहता है कि वह तीन या पांच साल में पजेशन दे देगा, तो उसे तीन या पांच साल में पजेशन दे देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो बिना कहे डेवलपर्स को होम बायर्स के एकाउंट में पेनाल्टी एमाउंट जमा करा देना चाहिए। फिर भले ही पजेशन देरी में दो हफ्ते की ही देरी क्यों न हुई हो। ऐसा होना भी चाहिए। क्योंकि यदि खरीदार से किस्त भुगतान में दो दिन की भी देरी होती है तो डेवलपर्स उससे पेनाल्टी लेते हैं। यहां ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि अपने उपभोक्ता के साथ गलत व्यवहार करने वाला व्यवसाय कभी लंबे समय तक नहीं चलता है।
भ्रामक मार्केटिंग का खेल हो बंद
रियल्टी कंपनियों को कॉम्पैक्ट होम्स (जहां छोटे घर के अलावा कुछ नहीं होता), सेलेब्रिटी एनडोर्समेंट (एनडोर्समेंट का खर्च भी आखिर घर खरीदार को ही उठाना पड़ता है), इंटरेस्ट रेट सबवेंशन (जहां भुगतान 20 फीसदी बुकिंग पर और शेष 80 फीसदी पजेशन पर देना होता है, यहां डेवलपर्स अपार्टमेंट कीमत में अतिरिक्त लागत भी जोड़ देते हैं), सुपर एरिया और कारपेट एरिया में हेरफेर, बड़ी बालकनी और छोटे लिविंग या बेडरूम सहित सभी तरह के भ्रामक मार्केटिंग रणनीति और विज्ञापनों के उपयोग को तुरंत बंद कर देना चाहिए।
जब तक आफ्टर सेल्स सर्विस अच्छी नहीं होगी, तब तक कोई भी विज्ञापन और मार्केटिंग मददगार नहीं होगी। इससे केवल कंपनियों के ऑपरेटिंग मार्जिन में कमी आएगी। बहुत अधिक कीमत की वजह से अधिकांश घर मध्यम वर्गीय परिवारों की पहुंच से बाहर होते हैं, इसलिए रियल एस्टेट कंपनियों को इस बात पर फोकस करना चाहिए कि कैसे बिना सस्ते होम लोन या इंटरेस्ट रेट सबवेंशन के घरों की कीमत कम की जाए।
याद रखें: 10 फीसदी पर 20 साल के 50 लाख रुपए लोन पर यदि 50 आधार अंकों की कटौती होती है तो इसकी ईएमआई 48,251 रुपए से घटकर 46,607 रुपए हो जाएगी। यानि की हर महीने केवल 1644 रुपए की बचत। अधिकांश लोग केवल इसलिए घर खरीदने के लिए आगे नहीं आएंगे कि 50 लाख रुपए के लोन पर उनकी ईएमआई केवल 1644 रुपए कम होगी। नोएडा और गुड़गांव जैसे इलाकों में 10 हजार रुपए मासिक किराये में बढि़या टू बीएचके घर किराये पर उपलब्ध है, ऐसे में क्यों कोई 45 हजार रुपए किस्त देगा। इसलिए रियल एस्टेट कंपनियों को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार और पारदर्शिता लाकर ग्राहकों को आकर्षित करना चाहिए न के ऑफर्स और डिस्काउंट का लालच देकर।