Insight of BoB : जानिए क्या हुआ देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक 'बैंक ऑफ बड़ौदा' के साथ
भारत का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक बैंक बैंक ऑफ बड़ौदा इस समय मुश्किल में है। बैंक पर गैरकानूनी ढंग से 6000 करोड़ रुपए कालाधन देश से बाहर भेजने का आरोप है।
नई दिल्ली। मार्केट कैपिटालाइजेशन के मामले में भारत का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक बैंक बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) इस समय मुश्किल में है। पिछले हफ्ते बैंक पर गैरकानूनी ढंग से 6000 करोड़ रुपए का कालाधन देश से बाहर भेजने का आरोप लगा है। बैंक ने इस मामले में अपने दो वरिष्ठ अधिकारियों को निलंबित कर दिया है, जबकि जांच एजेंसियों सीबीआई और ईडी ने अब तक इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया है।
एक नजर बैंक पर
बैंक ऑफ बड़ौदा की शुरुआत 1908 में हुई थी। इसके दुनियाभर के 25 देशों में 100 ब्रांच मौजूद हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा के कुल कर्मचारियों की संख्या 49,000 है। भारत में इसकी 5000 बैंक शाखाएं हैं। 20 अक्टूबर 2015 के मुताबिक बैंक का कुल मार्केट कैपिटालाइजेशन 40,610.81 करोड़ रुपए है। मार्केट कैप के आधार पर एसबीआई के बाद यह देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक है।
बैंक को नहीं हुआ कोई आर्थिक नुकसान
बैंक ऑफ बड़ौदा की नई दिल्ली में अशोक विहार ब्रांच से शुरू हुई जांच अब अन्य दूसरे बड़े बैंकों तक पहुंच गई है। बैंक ऑफ बड़ोदा ने 12 अक्टूबर को बीएसई को बताया कि 6000 करोड़ रुपए के इस ट्रांजैक्शन से बैंक को कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है। लेकिन उसकी साख पर जो बट्टा लगा है उससे पार पाना बैंक के लिए आसान नहीं होगा।
कैसे हुई शुरुआत
बैंक ने बीएसई को बताया कि 13 मई 2014 से 20 जून 2015 के बीच अशोक विहार ब्रांच में 59 करेंट एकाउंट खोले गए। इन एकाउंट की मदद से बड़ी मात्रा में विदेशी राशि विदेशों में भेजी गई। अगस्त 2015 तक कुल 5853 विदेशी मुद्रा ट्रांजैक्शन हुए, जिसमें 54.61 करोड़ (3500 करोड़ रुपए) डॉलर की राशि शामिल है।
यह ट्रांजैक्शन इंपोर्ट के लिए एडवांस पेमेंट के तौर पर किया गया था। यह धन तकरीबन 400 पार्टियों को ट्रांसफर किया गया, इनमें से अधिकांश पार्टियां हांगकांग की थीं, जबकि एक यूएई में है। इन सभी ट्रांजैक्शन के लिए ब्रांच ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून (फेमा) की गाइडलाइंस का पालन नहीं किया।
बैंक ऑफ बड़ौदा ने जुलाई 2015 में इन संदिग्ध ट्रांजैक्शन पर ध्यान दिया और तभी उसने आंतरिक जांच के आदेश दिए। बैंक के आंतरिक ऑडिट डिपार्टमेंट ने 22 सितंबर से इस मामले की जांच शुरू की। बैंक ने इसकी जानकारी सीबीआई, ईडी और वित्त मंत्रालय को 24 सितंबर को दी। दो दिन बाद यह जानकारी आरबीआई को भी दी गई। आगे की कार्रवाई करने से पहले बैंक जांच पूरी होने का इंतजार कर रहा था, तभी कुछ लोगों ने जांच की जानकारी मीडिया को दे दी।
बैंककर्मी हैं दोषी
10-11 अक्टूबर को सीबीआई ने विभिन्न कंपनियों के 50 ठिकानों पर छापे मारे, जिनपर तथाकथित रूप से इस घोटाले में शामिल होने का आरोप है। 11 अक्टूबर को सीबीआई ने कहा कि अधिकांश आरोपियों की पहचान कर ली गई है। दो दिन बार बैंक ऑफ बड़ौदा की अशोक विहार ब्रांच के एजीएम और एक अन्य कर्मचारी को गिरफ्तार किया गया। सीबीआई ने बताया कि बैंक ने इस विदेशी ट्रांजैक्शन के लिए एक्सेपशनल ट्रांजेक्शन रिपोर्ट (ईआरटी) नहीं बनाई। बैंकों को यह ईआरटी आरबीआई को देनी होती है। बैंक ने कभी भी इंपोर्ट वस्तुओं के आने संबंधी जानकारी भी नहीं ली। अब और बैंकों पर भी शक की सुई जाने लगी है। पहले ही एचडीएफसी बैंक का एक कर्मचारी गिरफ्तार हो चुका है।
कालेधन से लड़ाई
यह घोटाला ऐसे समय सामने आया है जब भारत विदेशी बैंकों में जमा कालाधन वापस लाने के प्रयास में जुटा हुआ है। काले धन की जांच के लिए बने विशेष जांच दल ने जांच एंजेसियों से उन फर्जी कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा है, जो देश से धन बाहर भेजने के लिए बैंकों का इस्तेमाल कर रही हैं। इस महीने के शुरुआत में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था जिन लोगों ने कालेधन का खुलासा नहीं किया है, उनके खिलाफ नए कालाधन कानून के प्रावधानों के तहत कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। 16 अक्टूबर को आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि इस घोटाले के बाद हमनें धोखे के अलर्ट के लिए एक पूरा नया सिस्टम बनाया है।
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