नई दिल्ली। लागू होने के अपने एक साल की अवधि में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने के अपने सबसे बड़े वादे को पूरा कर पाने में सफल नहीं हो पाया है। जबकि एक देश-एक टैक्स व्यवस्था में तमाम रुकावटों की वजह से नकदी की मांग बढ़ी है। एक विदेशी ब्रोकरेज रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
ब्रिटेन की ब्रोकरेज फर्म एचएसबीसी द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुचर्चित माल व सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली अपने एक सबसे बड़े वादे को अब तक पूरा नहीं कर पाई है। इसके अनुसार कहा गया था कि इस अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से अर्थव्यवस्था और अधिक औपचारिक होगी और संगठित क्षेत्र का विस्तार होगा लेकिन अभी तक तो ऐसा कुछ हुआ नजर नहीं आ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके विपरीत जीएसटी प्रणाली से नकदी की मांग बढ़ी है।
इसमें कहा गया है कि जीएसटी प्रणाली मूल रूप से औपचारिकता (अर्थव्यवस्था में संगठित क्षेत्र के विस्तार) से सम्बद्ध थी। लेकिन हमारी राय में अब तक तो यह अपने उस वादे पर खरा नहीं उतरी है। न ही इससे नकदी की मांग कम हुई बल्कि उसमें बढ़ोतरी ही हुई है। हालांकि इसमें कहा गया है कि दीर्घकालिक स्तर पर जीएसटी से अर्थव्यवस्था और अधिक औपचारिक (संगठित) होगी।
जीएसटी को एक जुलाई 2017 से लागू किया गया था। उसके बाद से इसमें अनेक बदलाव किए जा चुके हैं। यह शुरुआती दौर में कर रिफंड में देरी, नए आईटी नेटवर्क में प्रारंभिक दिक्कत व सेवाओं के लिए उच्च टैक्स स्लैब जैसे कई मुद्दों से जूझती नजर आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चलन में नकदी सामान्य से ज्यादा है यह ग्रामीण भारत के बेहतर प्रदर्शन के कारण नहीं बल्कि अनौपचारिक क्षेत्रों के पुनरोद्धार के कारण है, नोटों के चलन में आने की वजह से है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अप्रैल में दावा किया था कि नोटबंदी व जीएसटी से अर्थव्यवस्था और अधिक औपचारिक हुई है।
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