Zomato और Swiggy जैसी फूड डिलीवरी एप्स को माना जाएगा रेस्तरां, GST परिषद करेगी 5% टैक्स लगाने पर विचार
अनुमान के मुताबिक फूड डिलीवरी एग्रीग्रेटर द्वारा पिछले दो सालों में तथाकथित अंडर-रिपोर्टिंग के कारण सरकार को 2000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है।
नई दिल्ली। माल एवं सेवा कर (GST) परिषद जोमैटो और स्विगी जैसे फूड डिलिवरी एप को रेस्तरां मानने और उनके द्वारा की जाने वाली आपूर्ति पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगाने के प्रस्ताव पर शुक्रवार को चर्चा कर सकती है। इन फूड डिलिवरी एप को उनके माध्यम से आपूर्ति की जाने वाली रेस्तरां संबंधी सेवाओं पर जीएसटी का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी बनाने का प्रस्ताव उन चार दर्जन से अधिक प्रस्तावों में से एक है, जिनपर परिषद 17 सितंबर को लखनऊ में अपनी 45वीं बैठक में चर्चा करेगी। इस संबंध में मंजूरी मिलने पर इन एप को अपने सॉफ्टवेयर में बदलाव करने के लिए निश्चित समय दिया जाएगा ताकि इस तरह का कर लगाने में मदद मिले।
जीएसटी परिषद द्वारा मंजूरी दिए जाने के बाद, इन एप को उनके द्वारा की जाने वाली डिलिवरी के लिए सरकार के पास जीएसटी जमा करना होगा। वे रेस्तरां की जगह पर यह जीएसटी देंगे। हालांकि अंतिम उपभोक्ताओं पर किसी अतिरिक्त कर का बोझ नहीं पड़ेगा। अनुमान के मुताबिक फूड डिलीवरी एग्रीग्रेटर द्वारा पिछले दो सालों में तथाकथित अंडर-रिपोर्टिंग के कारण सरकार को 2000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है।
जीएसटी के तहत यह एप्स वर्तमान में टैक्स कलेक्टर्स एट सोर्स (टीसीएस) के रूप में रजिस्टर्ड हैं। इस प्रस्ताव को तैयार करने के पीछे एक वजह यह भी है कि स्वीगी व जोमैटो द्वारा कोई अनिवार्य रजिस्ट्रेशन जांच की सुविधा नहीं दी गई है और इस वजह से गैर-पंजीकृत रेस्तरां भी इन एप्स के माध्मय से आपूर्ति कर रहे हैं।
पेट्रोल, डीजल को जीएसटी में लाने पर हो सकता है विचार
माल एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की 17 सितंबर को होने वाली बैठक में संभवत: पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने पर विचार हो सकता है। यह एक ऐसा कदम होगा जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को राजस्व के मोर्चे पर जबर्दस्त ‘समझौता’ करना होगा। केंद्र और राज्य दोनों को इन उत्पादों पर कर के जरिये भारी राजस्व मिलता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अगुवाई वाली जीएसटी परिषद में राज्यों के वित्त मंत्री भी शामिल हैं। परिषद की बैठक शुक्रवार को लखनऊ में हो रही हैं।
सूत्रों ने कहा कि इस बैठक में कोविड-19 से जुड़ी आवश्यक सामग्री पर शुल्क राहत की समयसीमा को भी आगे बढ़ाया जा सकता है। देश में इस समय वाहन ईंधन के दाम रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं। ऐसे में पेट्रोल और डीजल ईंधनों के मामले में कर पर लगने वाले कर के प्रभाव को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया जा सकता है। वर्तमान में राज्यों द्वारा पेट्रोल, डीजल की उत्पादन लागत पर वैट नहीं लगता बल्कि इससे पहले केंद्र द्वारा इनके उत्पादन पर उत्पाद शुल्क लगाया जाता है, उसके बाद राज्य उस पर वैट वसूलते हैं। केरल उच्च न्यायालय ने जून में एक रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान जीएसटी परिषद से पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने पर फैसला करने को कहा था। सूत्रों ने कहा कि न्यायालय ने परिषद को ऐसा करने को कहा है। ऐसे में इसपर परिषद की बैठक में विचार हो सकता है।
देश में जीएसटी व्यवस्था एक जुलाई, 2017 से लागू हुई थी। जीएसटी में केंद्रीय कर मसलन उत्पाद शुल्क और राज्यों के शुल्क मसलन वैट को समाहित किया गया था। लेकिन पेट्रोल, डीजल, एटीएफ, प्राकृतिक गैस तथा कच्चे तेल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया। इसकी वजह यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को इन उत्पादों पर कर से भारी राजस्व मिलता है। जीएसटी उपभोग आधारित कर है। ऐसे में पेट्रोलियम उत्पादों को इसके तहत लाने से उन राज्यों को अधिक फायदा होगा जहां इन उत्पादों की ज्यादा बिक्री होगी। उन राज्यों को अधिक लाभ नहीं होगा जो उत्पादन केंद्र हैं।
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