कोच्चि। केंद्रीय वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने वसूल नहीं हो रहे ऋणों की समस्या के समाधान के लिए तथाकथित बैड-बैंक जैसे एक राष्ट्रीय बैंक के विचार का समर्थन किया।
उन्होंने कहा है कि पूंजीवादी व्यवस्था में सरकारों को कभी-कभी बड़ी कंपनियों को कर्ज संकट से उबरने के लिए मदद देनी पड़ती है। हालांकि, ऐसे मामलों में अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के आरोप भी लगाए जा सकते हैं।
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- भारत में खास कर सरकारी बैंकों गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) की समस्या से निपटने के लिए एक सुझाव बैड-बैंक बनाने का है।
- सुब्रमण्यम ने कहा कि यह सरकार के स्वामित्व वाला बैंक हो सकता है।
- ऐसा बैंक दबाव वाले ऋणों (परिसंपत्तियों) की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेकर उनके समाधान का प्रयास करेगा।
- दबाव वाले ऋणों में वसूल नहीं हो रहे ऋणों, NPA के अलावा पुनगर्ठित ऋण और बट्टे खाते में डाले गए कर्ज शामिल होते हैं।
सुब्रमण्यम ने माना अपनों को फायदा पहुंचाने के लग सकते हैं आरोप
- सुब्रमण्यम ने माना कि बड़े कर्जदारों को राहत देने से भ्रष्टाचार और अपनों को फायदा पहुंचाने वाली पूंजीवादी व्यवस्था चलाने के आरोप लग सकते है।
- उन्होंने कहा कि कई बार इस समस्या के समाधान के लिए कर्ज के ढ़ेर को बट्टे खाते में डालने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।
- मुख्य आर्थिक सलाहकार कल शाम यहां हार्मिस स्मारक व्याख्यान दे रहे थे।
- उन्होंने कहा कि दबाव ग्रस्त कर्ज की समस्या, बहुत टेढ़ी समस्या है और यह केवल भारत में है, ऐसा नहीं है।
- निजी क्षेत्र को दिए गए कर्ज माफ करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होता, खास कर तब जब कि ऐसी कंपनियां बड़ी हों।
- इस कार्यक्रम का आयोजन फेडरल बैंक ने किया था।
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- उन्होंनें कहा कि सरकारों में कर्ज माफ करने का माद्दा होना चाहिए और इसके लिए प्रयास करने का एक तरीका बैड-बैंक भी है।
- गौरतलब है कि देश की बैंकिंग प्रणाली में NPA, खास कर सरकारी बैंकों का NPA 2012-13 के 2.97 लाख करोड़ रुपए की तुलना में 2015-16 में दोगुने से भी अधिक बढ़ कर 6.95 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया।
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