नई दिल्ली। केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा को मौजूदा 20 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने पर विचार कर रही है। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य विदेशी निवेश प्रवाह को और अधिक बढ़ावा देना है। सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रालय इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। वित्त वर्ष 2016-17 के बजट में इसकी घोषणा हो सकती है।
यदि सरकार इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है, तो इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से संबंधित विभिन्न कानूनों में संशोधन होगा, जिससे विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई जा सकेगी। अभी सरकार से मंजूरी के रास्ते सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 20 प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति है। पिछले साल सरकार ने निजी क्षेत्र के बैंकों में विदेशी निवेश नियमों में ढील दी थी। इससे निजी क्षेत्र के बैंकों में एफआईआई, एफपीआई तथा क्यूएफआई को इस क्षेत्र के लिए तय सीमा के 74 प्रतिशत तक निवेश की अनुमति दी गई। बशर्ते निवेश करने वाली कंपनी के नियंत्रण और प्रबंधन में कोई बदलाव नही हो। इससे पहले निजी क्षेत्र के बैंकों में 49 प्रतिशत तक पोर्टफोलियो निवेश की अनुमति थी।
विदेशी निवेश की सीमा बढ़ने के परिणामस्वरूप पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा जिसकी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को तुरंत आवश्यकता है। सरकार सीतिम संसाधनों के चलते सरकारी बैंकों की मदद एक सीमा में ही कर सकती है। पिछले साल, सरकार ने एक सुधार योजना इंद्रधनुष की घोषणा की थी, जिसके तहत चार सालों में सरकारी बैंकों में 70,000 करोड़ की पूंजी डाली जानी है, जबकि बैंकों को बेसल 3 नियमों को पूरा करने के लिए बाजार से स्वयं 1.1 लाख करोड़ रुपए की पूंजी जुटानी होगी। योजना के मुताबिक पीएसयू बैंकों को चालू वित्त वर्ष के दौरान 25,000 करोड़ रुपए की पूंजी दी जाएगी। इतनी ही राशि अगले वित्त वर्ष में दी जाएगी। इसके अलावा वित्त वर्ष 2017-18 और 2018-19 में 10-10 हजार करोड़ रुपए दिए जाएंगे। 2015-16 के लिए तय 25,000 करोड़ में से सरकार अभी तक 20,088 करोड़ रुपए की पूंजी 13 पब्लिक सेक्टर बैंकों को दे चुकी है।
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