ऋण शोधन अक्षमता कानून (IBC) में सात संशोधनों को हरी झंडी, ये 58 कानून होंगे खत्म
दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता कानून को अधिक उपयोगी और कारगर बनाने के लिये सरकार ने इस कानून में सात संशोधन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
![ऋण शोधन अक्षमता कानून (IBC) में सात संशोधनों को हरी झंडी, ये 58 कानून होंगे खत्म Govt clears 7 amendments to insolvency law, resolution plan binding on all stakeholders- India TV Paisa](https://resize.indiatv.in/resize/newbucket/250_-/2019/07/insolvency-and-bankruptcy-code-1563423260.webp)
नयी दिल्ली। दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता कानून (IBC) को अधिक उपयोगी और कारगर बनाने के लिये सरकार ने इस कानून में सात संशोधन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इन संशोधनों में समाधान प्रक्रिया को पूरा करने के लिये 330 दिन की समयसीमा रखी गई है साथ ही समाधान योजना को सभी संबद्ध पक्षों के लिये बाध्यकारी बनाने का भी प्रावधान किया गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन बदलावों से कानून के अमल में आने वाली कई तरह की अड़चनों को दूर करने और समाधान प्रक्रिया को अधिक सरल बनाने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही समय की भी बचत होगी। बैंकों के पुराने फंसे कर्जों की वसूली को सुनिश्चित करने के लिये लाये गये इस कानून में अब तक दो बार संशोधन किया जा चुका है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) संशोधन विधेयक 2019 के मसौदे को मंजूरी दी गई। सात संशोधनों में एक प्रावधान यह भी रखा गया है कि ऋण शोधन प्रक्रिया के दौरान सामने आने वाली समाधान योजना सभी संबद्ध पक्षों पर बाध्यकारी होगी। इसमें लंबित कर्ज की देनदारी रखने वाली केन्द्र सरकार, कोई भी राज्य सरकार, स्थानीय प्राधिकरण को भी शामिल किया गया है।
सूत्रों का कहना है कि ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) प्रक्रिया के किसी भी समय कर्जदार कंपनी के परिसमापन का फैसला कर सकती है। यह निर्णय सीओसी समिति के गठन के बाद और समाधान के लिये सूचना ज्ञापन तैयार करने से पहले किसी भी समय ले सकती है।
संशोधनों के बाद कानून में समाधान योजना के हिस्से के तौर पर विलय और अलग होने जैसे कंपनी में व्यापक पुनर्गठन योजना की मंजूरी को लेकर भी अधिक स्पष्टता दी गई है। सूत्रों ने बताया कि कंपनियों के लिये दिवाला समाधान प्रक्रिया को पूरा करने के लिये 330 दिन का समय होगा। इसमें विवाद और दूसरी न्यायिक प्रक्रियाओं में लगने वाला समय भी शामिल होगा। वर्तमान में यह समयसीमा 270 दिन है लेकिन कई मामलों में विवाद होने पर अधिक समय लग रहा है।
एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि जिन संशोधन प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है वह कंपनियों के दिवाला समाधान रूपरेखा ढांचे में सामने आ रही अहम खामियों को दूर करने के लिहाज से दी गई है। हालांकि, इसके साथ ही समाधान प्रक्रिया से अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त हो सके इस बात का भी ध्यान रखा गया है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल भी आगे बढ़ाने को अपनी स्वीकृति प्रदान की है।
58 कानून खत्म करने को भी मंजूरी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उस विधेयक को भी मंजूरी दे दी, जिसमें प्रासंगिकता खो चुके 58 कानूनों को खत्म करने की बात कही गई है। राजग सरकार ने अपने दो कार्यकाल में अनावश्यक हो चुके 1824 पुराने कानूनों को खत्म करने के लिए कवायद की है। निरसन और संशोधन विधेयक 2019 को संसदीय मंजूरी मिलने के बाद अगले हिस्से में 137 कानूनों को खत्म किया जाएगा। जिन 58 कानूनों को खत्म किया जाएगा, तत्काल उनकी सूची उपलब्ध नहीं हो पाई है, लेकिन सरकार के सूत्रों ने कहा कि अधिकतर ऐसे कानून हैं जो प्रमुख और मुख्य कानूनों में संशोधन के लिए लागू किए गए थे।
ये हैं कुछ खत्म हुए कानून
खत्म किए गए कुछ पुराने कानूनों में घोड़ा गाड़ियों के नियमन और नियंत्रण के लिए बनाए गए हैकनी कैरिज एक्ट 1879 और ब्रिटिश शासन के खिलाफ नाटकों के जरिए होने वाले विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए बनाए गए ड्रामैटिक परफॉर्मेंस एक्ट 1876 शामिल हैं। लोकसभा द्वारा इसी तरह का खत्म किया गया एक अन्य कानून गंगा चुंगी कानून 1867 है, जो गंगा में चलने वाली नौकाओं और स्टीमरों पर चुंगी (12 आना से अधिक नहीं) वसूलने के लिए था।