एससी-एसटी के उम्मीदवारों को नौकरी देने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन देगी सरकार, ईपीएफओ जुटा रहा आंकड़े
श्रम मंत्रालय सकारात्मक पहल करते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को रोजगार देने वाली सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों को प्रोत्साहन देने पर विचार कर रहा है।
नयी दिल्ली। श्रम मंत्रालय सकारात्मक पहल करते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को रोजगार देने वाली सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों को प्रोत्साहन देने पर विचार कर रहा है। समझा जाता है कि श्रम मंत्रालय ने इस बारे में एक प्रस्ताव पर विचार विमर्श किया है। सकारात्मक पहल के तहत उद्योग संगठन स्वैच्छिक रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को समान अवसर देने की प्रतिबद्धता जताते है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और एसोचैम जैसे उद्योग मंडलों ने औपचारिक रूप से इस अवधारणा को अपनाया है।
श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने गुरुवार को यहां कहा, 'हम सकारात्मक पहल के तहत विभिन्न प्रस्तावों पर लगातार विचार करते रहते हैं।' उनसे पूछा गया था कि क्या उनका मंत्रालय सकारात्मक पहल के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को नौकरी देने के लिए किसी तरह का प्रोत्साहन देने पर विचार कर रहा है। मंत्री ने यहां फिक्की द्वारा आयोजित एक सम्मेलन के मौके पर अलग से बातचीत में कहा, 'हम इसके बारे में ब्योरा लेने के बाद इस प्रस्ताव के पूरे तौर तरीके के बारे में बता सकते हैं। हमें अंशधारकों के साथ विचार विमर्श के दौरान कई तरह के सुझाव मिलते रहते हैं।'
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) अपने 136 क्षेत्रीय कार्यालयों के जरिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में काम करने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के आंकड़े जुटा रहा है। अधिकारी ने बताया, 'श्रम मंत्रालय सरकारी शोध संस्थान नीति आयोग द्वारा कराए जा रहे एक अध्ययन के जरिए ईपीएफओ से आंकड़े जुटा रहा है। इससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की नियुक्ति के लिए कंपनियों को दिए जाने वाले प्रोत्साहनों के वित्तीय प्रभाव का आकलन किया जा सकेगा।'
तीन अक्टूबर को होगी एससी-एसटी एक्ट में संशोधन की वैधता पर सुनवाई
एससी/एसटी एक्ट में संशोधनों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट तीन अक्टूबर को सुनवाई करेगा। संसद में संशोधनों के जरिए कानून में तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधानों को हल्का करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया गया था। लेकिन जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च, 2018 के फैसले की समीक्षा की मांग वाली केंद्र सरकार की याचिका पर किसी पक्ष से लिखित प्रस्तुतियां स्वीकार नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने 18 सितंबर को केंद्र सरकार की समीक्षा याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए संकेत दिया था कि वह कानून के प्रावधानों के अनुसार वह समानता लाने के लिए कुछ खास निर्देश दे सकती है। अदालत ने सभी पक्षों से 20 सितंबर तक लिखित प्रस्तुतियां दायर करने का आदेश दिया था।
गौरतलब है कि इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने संशोधनों पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था। इन संशोधनों के जरिए इस कानून के तहत मामला दर्ज होने के बाद आरोपित को अग्रिम जमानत नहीं दिए जाने के प्रावधान को दोबारा बहाल कर दिया गया था। पिछले साल नौ अगस्त को इससे संबंधित विधेयक को पारित किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के दुरुपयोग के मामलों को देखते हुए 2018 में दिए अपने फैसले में कहा था कि इस कानून के तहत मामला दर्ज होने पर तत्काल कोई गिरफ्तारी नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे।