विदेशी भागीदारों को रॉयल्टी भुगतान की सीमा तय करेगी सरकार, अगले हफ्ते हो सकती है चर्चा- सूत्र
रॉयल्टी के भुगतान के रूप में करोड़ों डॉलर के बराबर रकम विदेशी भागीदारों को चुकाई गई।
नई दिल्ली। देश में निवेश बढ़ाने और देश से विदेश जा रही रकम का प्रवाह सीमित करने के लिए सरकार घरेलू कंपनियों के द्वारा अपने विदेशी भागीदारों को दी जाने वाली रॉयल्टी की सीमा तय कर सकता है। बिजनेस चैनल सीएनबीसी के द्वारा सूत्र के हवाले से दी गई खबर के मुताबिक वाणिज्य मंत्रालय ने इस बारे में प्रस्ताव तैयार कर लिया है और संभव है कि अगले हफ्ते होने वाली इस पर चर्चा हो। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक रॉयल्टी की सीमा अधिकतम 4 फीसदी रह सकती है। इसमें तकनीकी सहयोग, ब्रांड और डिजायन के लिए रॉयल्टी की सीमाएं अलग अलग तय होंगी।
वहीं बीते हफ्ते ही खबर आई थी कि सरकार ने ऑटो सेक्टर की कंपनियों से कहा था कि वो विदेशी भागीदार कंपनियों को दिए जाने वाले रॉयल्टी भुगतान को सीमित करने के उपाय तलाशें। ऑटो सेक्टर की मारुति सुजूकी और ह्यूंडाई की घरेलू यूनिट सालाना करोड़ो डॉलर जापान और साउथ कोरिया में स्थित पैरेंट कंपनी को रॉयल्टी के रूप में देती हैं। खबरों के मुताबिक वाणिज्य मंत्री ने इस बारे में सेक्टर के लोगों से बात की है। वाणिज्य मंत्री ने इस बारे में चिंता जताई कि रॉयल्टी के नाम पर देश से बाहर जाने वाली रकम काफी बड़ी है। यहां तक कि पुरानी तकनीकों पर भी घरेलू यूनिट काफी ऊंची रकम तकनीक मुहैया कराने वाली विदेशी भागीदारों को चुका रही हैं। साल 2009 के बाद रॉयल्टी के भुगतान में तेजी उछाल देखन को मिला जब विदेशी निवेश से जुड़े नियमों में ढील दी गई। पिछले साल से जब मोदी सरकार ने घरेलू उत्पादन पर जोर देना शुरू किया है तब से एक बार फिर रॉयल्टी भुगतान पर बहस शुरू हो गई है।
रॉयल्टी भुगतान पर सीमा लगाने की बात करीब 2 साल से जारी है। 1991 में सदन में रखी गई इंडस्ट्रियल पॉलिसी स्टेटमेंट में घरेलू बिक्री पर 5 फीसदी और निर्यात पर 8 फीसदी रॉयल्टी की सीमा तय की गई। हालांकि साल 2009 में ये सीमा हटाकर कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना अपने विदेशी भागीदारों को रॉयल्टी देने की छूट मिल गई। अप्रैल 2017 में रॉयल्टी के जरिए देश से बाहर जाने वाले रकम में उछाल के बाद इस बारे में इंटर मिनिस्टीरियल ग्रुप का गठन किया था।
रॉयल्टी की सीमा तय करने की पीछे सरकार का मानना है कि इससे घरेलू मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का मुनाफा बढ़ेगा, विदेशी मुद्रा की बचत होगी, छोटे शेयर धारकों के हितों की रक्षा होगी साथ ही सरकार की आय भी बढ़ेगी। इससे ज्यादा फायदा ऑटो सेक्टर को मिलने की उम्मीद है। मारुति अपनी पैरेंट कंपनी सुजूकी को बिक्री के 5.5 फीसदी के बराबर रॉयल्टी चुका रही है।