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जर्मन प्रोस्थेटिक कंपनी ऑटोबॉक ने ऑर्थोपेडिक सर्जन से मिलाया हाथ

ऑर्थोपेडिक में ग्लोबल लीडर ऑटोबॉक ने ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ आदित्य खेमका के साथ मिलकर ऑशिओइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी पेश की, ताकि इस इनोवेटिव टेक्नोलॉजी के माध्यम से अपंग मरीज फिर से सामाजिक और आर्थिक जीवन में लौट सकें।

German prosthetics company Ottobock announces collaboration with orthopedic surgeon- India TV Paisa German prosthetics company Ottobock announces collaboration with orthopedic surgeon

ऑर्थोपेडिक में ग्लोबल लीडर ऑटोबॉक ने ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ आदित्य खेमका के साथ मिलकर ऑशिओइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी पेश की, ताकि इस इनोवेटिव टेक्नोलॉजी के माध्यम से अपंग मरीज फिर से सामाजिक और आर्थिक जीवन में लौट सकें। भारत में कई ऐसे लोग हैं, जिनमें कई प्रकार की दिव्यांगताएं हैं और प्रत्येक 1000 लोगों में 0.62 अपंग मरीज हैं। डॉक्टर ने ऑटोबॉक को वैश्विक स्तर पर अपंगुओं के इलाज के लिए मेडिकल टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता के 100 वर्षों के इतिहास के कारण चुना है। वियरेबल ह्यूमन बायोनिक्स के क्षेत्र की अग्रणी कंपनी अपने ग्राहकों के जीवन को फिर से चलने फिरने में सक्षम बनाने हेतु प्रतिबद्ध है।

हालिया अनुमानों के अनुसार भारत में वर्तमान में ऐसे करीब 10 लाख लोग हैं, जिनकी अपंगुता संबंधी सर्जरी हुई है। चलने-फिरने में समस्या के साथ अपंगुता, विशेषकर युवा लोगों में ट्रॉमा का कारण भी बनती है और इनमें सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग होने जाने की भावना आती है। ऐसे में सर्जन, क्लीनिक में काम करने वालों, सरकार, समाज की जिम्मेदारी को कई गुना बढ़ा जाती है ताकि ये लोग फिर से अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में लौट सकें।

ओशिओइंटीग्रेशन एक मौलिक प्रक्रिया है, जिसमें अपंगु की हड्‌डी में टाइटेनियम इंप्लांट के माध्यम से प्रोस्थेटिक्स और स्केलटल को जोड़ा जाता है। यह एक इंटरफेस बनाता है, जो सीधे प्रोस्थेटिक लिंब को जोड़ता है। इस तरह कृत्रिम पैर, जिसमें हड्‌डी और मांसपेशियां विकसित होती हैं, इसकी रॉड के ऊपरी हिस्से में हायड्रोलिक्स सिस्टम होता है और माइक्रोप्रोसेसर लोअर लिंब को संचालित करता है, जिसकी मदद से मरीज को लिंब को बेहतर कंट्रोल करने में मदद मिलती है।

ऑटोबॉक के मैनेजिंग डायरेक्टर और रीजनल प्रेसीडेंट मि बर्नार्ड ओ कीफ ने कहा कि “ऑटोबॉक अपंगु मरीजों के लिए इलाज में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। भारत में हमने हमेशा अपना वैश्विक अनुभव के उपयोग का प्रयास किया है ताकि यहां के लोगों के लिए सहज टेक्नोलॉजी बनाई जा सके। यदि कोई अनुभवहीन या अयोग्य हेल्थकेयर प्रोफेशनल ओशिओइंटीग्रेशन के माध्यम से प्रोस्थेटिक कंपोनेंट फिट करता है, तो इसके विपरीत प्रभाव देखने को मिल सकते हैं और मरीज को हानि पहुंच सकती है। इसीलिए हमने अपने 100 वर्ष का अनुभव उपयोग करते हुए ओशिाओइंटीग्रेशप के लिए विश्वभर में प्रोटोकॉल स्थापित किए हैं।”

ओशिओइंटीग्रेशन में विशेषज्ञता हासिल करने वाले ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ आदित्य खेमका ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि “ऑशिओइंटीग्रेशन अपंगुओं के इलाज की प्रक्रिया को नया आयाम प्रदान करेगा। प्रोस्थसिस का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा इसका सॉकेट है। सॉकेट को अलग-अलग जरूर के अनुसार बनाया जाता है और एड़ी, पैर की स्किल के अनुसार फैब्रिकेट होता है। इसलिए सॉकेट यदि सही नहीं है, तो सबसे बेहतरीन कंपोनेंट के साथ प्रोस्थसिस सही इलाज नहीं कर पाएगा। ऑशिओइंटीग्रेशन ने सॉकेट की समस्या को हल किया है और स्किन ब्रेकडाउन या किसी तरह की असहजता की गुंजाइस को समाप्त किया है। इसके कई अन्य फायदे भी हैं, जैसे प्रोस्थेसिस पहनने और निकालने में आसानी, हड्‌डी से सीधा जुड़े होने के कारण जमीन से संपर्क में बेहतर महसूस होना, आदि। इससे प्रोस्थेसिस में ऊर्जा के संचार और कंट्रोल में मरीज को काफी सहूलियत होती है। हम यहां बिल्कुल असली कृत्रिम अंग बनाने का प्रयास कर रहे हैं।”

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