नई दिल्ली। देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) अप्रैल-नवंबर के दौरान 31 फीसदी बढ़कर 24.8 अरब डॉलर रहा है। वित्त वर्ष 2015-16 की आर्थिक समीक्षा में यह बात कही गई है। इससे पूर्व वित्त वर्ष 2014-15 की अप्रैल-नवंबर अवधि में यह 18.9 अरब डॉलर था।
समीक्षा के अनुसार एफडीआई नीति को उदार एवं सरलीकृत बनाने तथा देश में कारोबार सुगमता माहौल उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने सुधार की दिशा में कई कदम उठाए हैं। एफडीआई प्रवाह कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर, सेवा, ट्रेडिंग, वाहन उद्योग, निर्माण गतिविधियों, रसायन एवं दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में बढ़ा है। समीक्षा के अनुसार, वित्त वर्ष 2015-16 (अप्रैल-नवंबर) में आए 24.8 अरब डॉलर के एफडीआई प्रवाह में से 60 फीसदी से अधिक दो देशों सिंगापुर तथा मॉरीशस से आए हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि सितंबर 2014 में मेक इन इंडिया अभियान शुरू होने के बाद अक्टूबर 2014 से जून 2015 के बीच एफडीआई प्रवाह में इससे पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 40 फीसदी की वृद्धि हुई है।
FTA से निर्यात से अधिक आयात बढ़ा
भारत ने अभी तक जो मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) किए हैं उनसे निर्यात के बजाये देश का आयात अधिक बढ़ा है। संसद में आज पेश 2015-16 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि एफटीए से आयात और निर्यात दोनों बढ़े, लेकिन आयात में बढ़ोतरी अधिक रही। समीक्षा में कहा गया है कि इसकी मुख्य वजह यह है कि भारत कमोबेश अधिक ऊंची शुल्क दर रखता है। ऐसे में उसे अपने एफटीए भागीदारों की तुलना में दरों में अधिक कमी करनी पड़ती है। 2000 के मध्य से भारत के मुक्त व्यापार समझौते आज दोगुने होकर 42 पर पहुंच गए हैं।
कुछ विशेष व्यापार समझौतों का जिक्र करते हुए इसमें कहा गया है कि आसियान के साथ एफटीए का अधिक प्रभाव रहा। संभवत: इसकी वजह है कि इसके तहत भारत द्वारा दरों की कटौती अधिक रही है। समीक्षा में कुछ सवाल भी उठाए गए हैं। इसमें कहा गया है कि सबसे बड़ा सवाल यह है कि आगे चलकर क्या भारत को एफटीए पर वार्ताओं को जारी रखना चाहिए, यदि हां तो किनके साथ। इससे भी बड़ा सवाल यह है कि भारत को नए बड़े क्षेत्रीय करारों में क्या रुख अपनाना चाहिए।
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