उदयपुर। चार साल पहले राजस्थान के महाराज की खेड़ी गांव में नंद लाल दांगी अपनी दो एकड़ जमीन पर सालभर में मात्र 20 टन खीरा उगाते थे। लेकिन अब मिट्टी रहित कोको पीट खेती की तकनीक ने उनकी तकदीर बदल दी और उनकी उपज चार गुना बढ़कर 80 टन सालाना हो गई। दक्षिण राजस्थान में इस सुदूरतम गांव के 40 वर्षीय किसान दांगी का कहना है कि इससे उनकी वार्षिक आय बढ़ी है। उनके जीवन में एक समय ऐसा भी था जब किसानी की लागत निकालना भी मुश्किल होता था। क्योंकि या तो फसल का नुकसान हो जाता था या उपज ही कम रहती थी।
जयपुर से 425 किलोमीटर दूर इस गांव में गर्म जलवायु के अलावा गोल कृमि की समस्या बहुत आम है और इससे लड़ना एक चुनौती है। इससे फसल को नुकसान पहुंचता है क्योंकि यह पौधे की जड़ को नुकसान पहुंचाता है।
दांगी ने कहा कि कई बार फसल का नुकसान झेलने के बाद मैंने 10 लाख रुपए का निवेश कर अपने खेत के लिए नई मिट्टी खरीदी लेकिन गोल कृमि की समस्या जस की तस रही। मेरी उम्मीद 40 से 45 टन खीरा उत्पादन की थी लेकिन यह 10 टन ही रह गई क्योंकि बाकी फसल अन्य कारणों से नष्ट हो गई।
अंत में 2013 में इस इजरायली तकनीक से उनका सामना गुजरात दौरे के दौरान हुआ। इसने उन्हें मुस्कुराने की वजह दी है। गुजरात के साबरकांठा में हिम्मतनगर नगर निकाय में उन्होंने देखा कि एशियन एग्रो कंपनी सब्जियों का उत्पादन कोको पीट में कर रही है। कोको पीट नारियल की भुसी से तैयार हुई मिट्टी जैसे तत्व को कहते हैं।
इस तकनीक को अपनाने के बाद दांगी की उतने ही क्षेत्र में फसल 80 टन हो गई। उन्होंने बताया कि नई तकनीक में वह टपक सिंचाई का उपयोग करते हैं और साथ ही उन्होंने तुर्की की खीरा किस्म युक्सकेल 53321 हाइब्रिड का उत्पादन शुरू किया। उनकी एक एकड़ भूमि पर इस तकनीक को अपनाने की कुल लागत करीब तीन लाख रुपए आई। इसमें बीज और कोको पीट की लागत करीब एक लाख रुपए रही।
कोको पीट का उत्पादन पॉलीबैग में होता है और इसमें गोलकृमि प्रवेश नहीं कर पाती जिससे फसल को नुकसान नहीं पहु्ंचता है।
यह भी पढ़ें : इजरायली मीडिया ने कहा, नेतान्याहू को घूस देने के मामले में रतन टाटा ने इजरायली पुलिस को दिया बयान
यह भी पढ़ें : कालेधन पर पनामा लीक के बाद अब सामने आए पैराडाइज दस्तावेज, 714 भारतीयों के नाम शामिल
Latest Business News