मुंबई: देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वित्त वर्ष 2021-22 में श्रम बाजार की गतिविधियां सुधरेंगी और कंपनियां महामारी कम होने के साथ नियुक्ति की योजनाओं को आगे बढ़ा रही हैं। अर्थशास्त्रियों ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) और नई पेंशन योजना (एनपीएस) के नियमित तौर पर जारी मासिक वेतन रजिस्टर के आंकड़ों का जिक्र किया। मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष ने एक नोट में कहा, ‘‘हमारा अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में श्रम बाजार की गतिविधियां बेहतर रहेंगी। कंपनियां आने वाले समय में नियुक्ति योजनाओं को अमल में लाएंगी।’’
रोजगार को लेकर यह उम्मीद ऐसे समय जतायी गयी है, जब दूसरी महामारी के बाद बेरोजगारों की संख्या बढ़ने और अर्थव्यवस्था में श्रम भागीदारी में कमी को लेकर चिंता जतायी जा रही है। सेंटर फार मॉनिटरिंग इंडियन एकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार केवल अगस्त महीने में 15 लाख भारतीयों की नौकरियां चली गयी। इसमें 13 लाख ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। देश में रोजगार आंकड़े की कमी को लेकर विभिन्न तबकों में चिंता जतायी जाती रही है।
ईपीएफओ और एनपीएस के रोजगार के आंकड़े की आलोचना की जाती रही है क्योंकि यह केवल संगठित क्षेत्र में नौकरियों तक सीमित है। जबकि बहुत सारा काम असंगठित क्षेत्र में होता है। घोष ने कहा, ‘‘क्षेत्र को संगठित रूप देने की दर 10 प्रतिशत है। कुल नियमित रोजगार (पेरोल) में नई नौकरी का अनुपात 50 प्रतिशत है। यह बताता है कि प्रत्येक दो रोजगार में एक नियमित नौकरी में नया जुड़ाव है। यह वित्त वर्ष 2020-21 में 47 प्रतिशत था। यानी इसमें सुधार हुआ है।
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट के अनुसार जून तिमाही में 30.74 करोड़ नियमित नौकरियां सृजित हुई। इसमें 16.3 लाख नई नौकरियां थी, जो पहली बार ईपीएफओ या एनपीए से जुड़े। इसमें कहा गया है कि अगर नई नौकरियों में इसी रफ्तार से बढ़ोतरी होती रही तो यह 2021-22 में 50 लाख पार कर सकता है जो 2020-21 में 44 लाख था। रिपोर्ट के अनुसर अच्छी बात यह है कि शुद्ध रूप से ईपीएफओ अंशधारकों की संख्या वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में बढ़ी है। यह बताता है कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान श्रम बाजार में ज्यादा समस्याएं नहीं आयी।
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