आर्थिक सर्वेक्षण: वित्त वर्ष 2017-18 में देश की GDP विकास दर 6.75% से 7.5% रहने का अनुमान, ये हैं 3 बड़े खतरे
आर्थिक सर्वेक्षण 2016-2017 के मुताबिक अगले वित्त वर्ष में देश की GDP विकास दर ग्रोथ 6.75 फीसदी से 7.5 फीसदी रहने का अनुमान है।
नई दिल्ली। आम बजट से ठीक पहले संसद में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देश की आर्थिक स्थिति की तस्वीर पेश की है। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-2017 के मुताबिक अगले वित्त वर्ष में देश की GDP विकास दर 6.75 फीसदी से 7.5 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। साथ ही, सर्वेक्षण में आगे की ग्रोथ के लिए तीन सबसे बड़े खतरों का जिक्र भी किया गया है।
- तेल की कीमतों में तेजी से वित्त वर्ष 2018 में ग्रोथ पर असर पड़ेगा।
- नकदी की कमी से एग्रीकल्चर प्रोडक्शन की सप्लाई प्रभावित होगी।
- नोटबंदी का असर वित्त वर्ष 2017-18 में जीडीपी ग्रोथ पर दिखाई देगा।
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, कच्चे तेल के घटे दाम से अप्रत्याशित राजकोषीय लाभ की उम्मीद।
- वस्तु एवं सेवा कर से राजकोषीय लाभ मिलने में लगेगा समय।
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तस्वीरों में देखिए आर्थिक सर्वेक्षण की मुख्य बातें
Economic Survey 2016-17
कौन बनाता है आर्थिक सर्वेक्षण
- बीते वित्त वर्ष में देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की समीक्षा के बाद वित्त मंत्रालय यह वार्षिक दस्तावेज बनाता है।
- इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) अपनी टीम के साथ मिलकर तैयार करते हैं।
- इस बार अरविंद सुब्रमण्यन और उनकी टीम ने आर्थिक सर्वे तैयार किया है।
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देखिए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की प्रेस कॉन्फ्रेंस लाइव
सिफारिश मानना सरकार पर निर्भर करता है
- सरकार आर्थिक सर्वे में की गई सिफारिशें मानने के लिए बाध्य नहीं होती है।
- सरकार इसे नीति निर्देशक के रूप में जरूर महत्व देती है।
- अतीत में आर्थिक सर्वे में कई नीतियों में इस तरह के बदलाव की सिफारिश कर चुकी है जो मौजूदा सरकार की सोच से मिलती-जुलती नहीं थी।
- आर्थिक सर्वे से बजट का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
- कई मौकों पर आर्थिक सर्वे में की गई सिफारिशें बजट प्रस्तावों में शामिल नहीं की गईं।
- सरकार का कहना है कि विमुद्रीकरण से जीडीपी वृद्धि दर पर पड़ रहा प्रतिकूल असर अस्थायी ही रहेगा।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2017 में कहा गया है कि मार्च 2017 के आखिर तक नकदी की आपूर्ति के सामान्य स्तर पर पहुंच जाने की संभावनाहै, जिसके बाद अर्थव्यवस्था में फिर से सामान्य स्थिति बहाल हो जाएगी।
- आर्थिक सर्वेक्षण में इस ओर ध्यान दिलाया गया है कि विमुद्रीकरण के अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक प्रतिकूल असर और लाभ दोनों ही होंगे।
- विमुद्रीकरण से पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों में नकद राशि की आपूर्ति में कमी और इसके फलस्वरूप जीडीपी वृद्धि मेंअस्थायी कमी शामिल है, जबकि इसके फायदों में डिजिटलीकरण में वृद्धि, अपेक्षाकृत ज्यादा कर अनुपालन और अचल संपत्ति की कीमतों में कमी शामिल हैं।
- जिससे आगे चलकर कर राजस्व के संग्रह और जीडीपी दर दोनों में ही वृद्धि होने की संभावना है।