नई दिल्ली। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकारी कंपनियों में विनिवेश के जरिये 69,500 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है। पहले सात माह निकल चुके हैं और सरकार अभी तक चार कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर केवल 12,600 करोड़ रुपए ही जुटा पाई है। विनिवेश लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार के पास अब केवल पांच माह का समय बचा है। इन पांच माह में सरकार को 56,900 करोड़ रुपए और जुटाने हैं, जो कि एक बड़ी चुनौती है।
क्या है सरकार की रणनीति
सरकार ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 69,500 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है। इसमें से 41,000 करोड़ रुपए सार्वजनिक उपक्रमों में अल्पांश हिस्सेदारी बेचने से और 28,500 करोड़ रुपए रणनीतिक हिस्सेदारी बिक्री से जुटाने की योजना है।
छह माह में बाजार से जुटाए गए 17,550 करोड़ रुपए
बाजार के आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में शेयर बाजार से कुल 17,550 करोड़ रुपए की राशि जुटाई गई है। इसमें से 12,600 करोड़ रुपए की राशि सरकार ने चार कंपनियों पीएफसी, आरईसी, आईओसी और ड्रेजिंग कॉर्प में हिस्सेदारी बेचकर जुटाई है, जबकि शेष 4,950 करोड़ रुपए की राशि निजी क्षेत्र की कंपनियों ने आईपीओ के जरिये जुटाई गई है।
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वित्त मंत्री ने माना विनिवेश लक्ष्य है चुनौती
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश के लक्ष्य में चुनौती की बात स्वीकार की है। उन्होंने कहा कि विनिवेश लक्ष्य में कमी रहने पर भी राजकोषीय घाटे को कम करने के लक्ष्य पर असर नहीं पड़ेगा। जेटली ने कहा कि राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.9 फीसदी तक सीमित रखने के लक्ष्य को हासिल करने में कोई कठिनाई नहीं होगी। उन्होंने कहा कि विनिवेश की चुनौती मुख्यरूप से वैश्विक समस्याओं के कारण है।
इन कंपनियों में बिकनी है हिस्सेदारी
मोदी सरकार ने विनिवेश लक्ष्य हासिल करने के लिए नाल्को, एनएमडीसी, ऑइल इंडिया लिमिटेड, एनटीपीसी, भेल, ओएनजीसी और कोल इंडिया में अतिरिक्त 10 फीसदी हिस्सेदारी बिक्री को अपनी मंजूरी पहले ही दे दी है।
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