नई दिल्ली। डायरेक्ट सेलिंग उद्योग को कानूनी दर्जा दिए जाने की मांग के बीच उपभोक्ता मामलों के सचिव अविनाश के श्रीवास्तव ने आज कहा कि प्रस्तावित उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत नियम बनाकर इस क्षेत्र का विनियमन किया जा सकता है।
वर्ष 2016 में सरकार ने डायरेक्ट सेलिंग उद्योग के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे और इसे पोंजी योजनाओं से अलग किया था। छत्तीसगढ़ और सिक्किम जैसे राज्य इन नियमों को अपना चुके हैं और अन्य अपनाने की प्रक्रिया में हैं। चूंकि ये दिशा-निर्देश बाध्यकारी नहीं है, इसलिए राज्यों द्वारा इन्हें तेजी से नहीं अपनाया जा रहा है।
उद्योग मंडल फिक्की द्वारा आयोजित कार्यक्रम के अवसर पर श्रीवास्तव ने अलग से कहा कि कुछ राज्य दिशा-निर्देशों को अपना रहे हैं। हालांकि, क्षेत्र के उचित तरीके से नियमन के लिए हमने उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत नियम बनाने का प्रावधान किया है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित विधेयक के तहत संसद की एक स्थायी समिति ने भी क्षेत्र के नियमन की सिफारिश की है, जिसे संसद में जल्द पारित किया जाएगा।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्रीवास्तव ने कहा कि डायरेक्ट सेलिंग ढांचे के तहत बिक्री टीम को दिए जाने वाले कमीशन की सीमा तय करने की जरूरत है। उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद मोदीकेयर, ओरिफ्लेम इंडिया के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि डायरेक्ट सेलिंग इकाइयों द्वारा बिक्री करने वालों को दिए जाने वाले कमीशन की सीमा क्यों नहीं होनी चाहिए? एमवे ने इसके लिए 20 प्रतिशत की सीमा तय की है। उद्योग को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए।
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