नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और उसकी भागीदार ब्रिटिश गैस (बीजी) को अपनी संपत्तियों के बारे में जानकारी देने को कहा है। न्यायालय ने यह आदेश केन्द्र सरकार की याचिका पर दिया है। केन्द्र सरकार ने उच्च न्यायालय में दायर याचिका में इन दोनों कंपनियों को अपनी संपत्तियों नहीं बेचने का निर्देश देने का आग्रह किया है। सरकार इन दोनों कंपनियों को उनकी संपत्तियों को बेचने से दूर रहने का आदेश देने के लिए अदालत पहुंची है। केन्द्र सरकार का कहना है कि इन कंपनियों ने उसे 385.67 करोड़ डॉलर का भुगतान नहीं किया है। यह राशि पन्ना-मुक्ता और ताप्ती (पीएमटी) के उत्पादन-भागीदारी अनुबंध मामले में मध्यस्थता अदालत के केन्द्र सरकार के पक्ष में दिए गए फैसले के तहत दी जानी थी। बता दें कि साल 1994 में हुआ पीएमटी कॉन्ट्रैक्ट अब खत्म हो चुका है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे.आर. मिधा ने दोनों कंपनियों को नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के तहत जारी 16ए के नये फार्म के अनुरूप अपनी संपत्तियों के बारे में हलफनामा दायर करने को कहा है। इस फार्म के प्रारूप को उच्च न्यायालय ने हाल में दिए गए एक फैसले में जारी किया है। उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर को दिए गए निर्देश में इन कंपनियों को 16ए के नए फार्म के अनुरूप हलफनामा दायर करने को कहा है। यह निर्देश सरकार की ओर से दायर कि गई याचिका के बाद दिया गया। केंद्र सरकार ने अपने आवेदन में कहा है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज भारी कर्ज के बोझ में है और यही वजह है कि कंपनी अपनी संपत्तियों को बेचने, हस्तांतरित करने की प्रक्रिया में है। ऐसा कर वह अपनी चल एवं अचल संपत्तियों में तीसरे पक्ष को ला रही है। रिलायंस यदि अपनी संपत्ति की बिक्री कर देती है तो ऐसी स्थिति में मध्यस्थता अदालत के निर्णय को अमल में लाने के लिए सरकार के लिए कुछ नहीं बचेगा।
छह फरवरी को अगली सुनवाई
आरआईएल के निदेशक को कंपनी की संपत्तियों का ब्योरा देने के लिए एक हलफनामा दायर करने का निर्देश देते हुए उच्च न्यायालय की एक वाणिज्यिक पीठ ने कहा कि वह मामले की अगली सुनवाई छह फरवरी को करेगी। टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा किए गए सवालों का आरआईएल ने शुक्रवार रात तक कोई जवाब नहीं दिया। टीओआई ने इसके लिए कंपनी को कॉल किया और टेक्स्ट मेसेज भेजे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
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