दिल्ली में 2000 CC से ज्यादा क्षमता की डीजल कारों पर प्रतिबंध रहेगा जारी: SC
SC ने दिल्ली, NCR में 2000 CC या उससे उंची क्षमता की डीजल कारों के पंजीकरण पर प्रतिबंध के अपने आदेश में कोई संशोधन करने से आज इनकार कर दिया है।
नई दिल्ली: SC ने दिल्ली, NCR में 2000 CC या उससे उंची क्षमता की डीजल कारों के पंजीकरण पर प्रतिबंध के अपने पहले के आदेश में कोई संशोधन करने से इनकार कर दिया। इससे यह पाबंदी बरकार रहेगी। न्यायालय ने इससे पहले पिछले साल 16 दिसंबर को अपने अंतरिम आदेश में दिल्ली और NCR क्षेत्र में इस वर्ग की कारों के पंजीकरण पर 31 मार्च 2016 तक के लिए पाबंदी लगायी थी।
न्यायालय ने 31 मार्च को कहा था कि 16 दिसंबर 2015 का अंतरिम आदेश इस न्यायालय के अगले आदेश तक लागू रहेगा। न्यायालय ने आज इस संबंध में कोई नया निर्देश नहीं जारी किया, लिहाजा यह पाबंदी अभी अगले आदेश तक जारी रहेगी।
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मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ इस विषय में दायर विभिन्न याचिकाओं पर अब 9 मई को सुनवाई करेगी। इन याचिकाकर्ताओं में मर्सिडीज, टोयोटा, महिंद्रा और जनरल मोटर्स जैसी वाहन बनाने वाली दिग्गज कंपनियां भी शामिल है। इन कंपनियों ने बड़ी डीजल कारों और SUV वाहनों के पंजीकरण की छूट दिये जाने का आग्रह किया है।
दिल्ली में बढते प्रदूषण पर अंकुश लगाने का निर्देश के लिए SC में याचिका तीन नाबालिगों की ओर से दायर की गयी थी। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने आज सुनवाई के दौरान अमेरिका के कैलीफार्निया का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि स्थिति सुधारने के लिए वहां जो कदम उठाए गए थे, यहां भी प्रदूषण कम करने के लिए वे कदम उठाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि केलीफोनिर्या में डीजल और पेट्रोल दोनों तरह के वाहन चलते हैं। दि डीजल की गाडि़यों में कैटेलिटिक कनवर्टर लगा हो या उसे बाद मे लगवा दिया जाए तो प्रदूषण में काफी कमी आ सकती है। उन्होंने कहा कि जब CNG शुरू की गयी तो कई लोगों ने कहा कि यह संभावना नहीं है। दूसरों ने उसे बहुत महंगा कहा था पर लोगों ने उसे अपना ही लिया। पहले गाड़ी में CNG फिट कराने में दो तीन महीने लग जाते थे, आज यह काम 40,000 से 80,000 रपए के खर्च में दो तीन दिन में हो जाता है।
उन्होंने कहा कि इसी तरह डीजल की गाडि़यों में भी कैटेलिटिक कनवर्टर अलग से लगवाने से हवा में पार्टिकुलेट (कण) के रूप में तैरने वाले प्रदूषकारी तत्वों में काफी कमी हो सकती है। इसपर पीठ ने कहा, पहले किसी ने इस तरह का तर्क नहीं दिया। पीठ ने वेणुगोपाल पूछा कि क्या इस अनुसंधान या रेट्रोफिट इंजनों की कुशलता के बारे में कोई जांच की गयी है। इस पर अधिवक्ता ने जवाब दिया कि सरकार इसकी जांच कर सकती है पर कहने का तात्पर्य यह है कि यह वाहन प्रदूषण की समस्या का एक समाधान हो सकता है। रेट्रोफिटिंग की लागत 10-12 हजार रुपए आती है।
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