मोबाइल हैंडसेट बाजार पर कब्जा करने के बाद, अब भारतीय ऑटो मार्केट पर चाइनीज कंपनियों की नजर
भारत की मजबूत होती अर्थव्यवस्था और बाजार के परिपक्व होने के बाद चीन की ऑटोमोबाइल कंपनियों ने भारत के ऑटो मार्केट में प्रवेश करने की योजना बनाई है।
नई दिल्ली। चीन को दुनिया का ग्रोथ इंजन बनाने में मैन्युफैक्चरिंग का बड़ा योगदान रहा है, लेकिन अब मेक इन इंडिया कार्यक्रम के साथ बहुत सी विदेशी कंपनियां, जिनमें चीन की कंपनियां भी शामिल हैं, तेजी से विकसित होते भारतीय बाजार में अपना विस्तार कर रही हैं। इससे ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स भी अछूते नहीं हैं, फोर्ड, शेवरले, निसान और होंडा आदि कंपनियां आक्रामक ढंग से विस्तार रणनीति बना रही हैं। भारत की मजबूत होती अर्थव्यवस्था और बाजार के परिपक्व होने के बाद चीन की ऑटोमोबाइल कंपनियों ने लंबे अर्से बाद यहां के ऑटो मार्केट में प्रवेश करने की योजना बनाई है।
द हिन्दू अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक चीन की शैनगैन ऑटोमोबाइल्स (Changan Automobile) तमिलनाडु या आंध्र प्रदेश में अपना प्लांट स्थापित करने की योजना बना रही है। इतना ही नहीं चीन की एसयूवी विशेषज्ञ ग्रेट वॉल मोटर कंपनी (Great Wall Motor Company) भी अपने नए प्रतिस्पर्धी सेगमेंट के जरिये भारत में प्रवेश करने के लिए बातचीत कर रही है। भारत का बाजार अब परिपक्व हो चुका है, ऐसे में अधिक से अधिक सेगमेंट खुलेंगे, जिससे चीनी कंपनियों के पास एक बड़ी बाजार हिस्सेदारी हासिल करने का मौका है। चीन की कार कंपनियों को दुनियाभर में बुगाटी, बेनटले, लिंकन और ऑस्टन मार्टिन जैसी गाडि़यों की नकल कर इनके सस्ते विकल्प उपलब्ध कराने के लिए जाना जाता है।
इस समय क्यों चीनी ऑटो कंपनियां भारतीय बाजार में करना चाहती हैं प्रवेश?
भारतीय बाजार में बहुत सी कंपनियों के प्रवेश करने के पीछे सबसे प्रमुख वजह यह है कि यहां सुजुकी, हुंडई, होंडा और फोर्ड जैसी स्थापित कंपनियां हैं, जिनका दशकों से इंडस्ट्री पर मजबूत पकड़ है। कोई भी कंपनी आसानी से यहां आकर ऑटोमोबाइल बाजार में खलबली नहीं मचा सकती है। क्योंकि ऑटोमोबाइल स्मार्टफोन की तरह नहीं है, जिसे जल्दी-जल्दी अपग्रेड और अपडेट किया जा सकता है। हालांकि, भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में कई नए सेगमेंट खुल चुके हैं, चीन की ऑटो कंपनियां इन नए सेगमेंट में अपने लिए अवसर देख रही हैं, जो तेजी से विकसित हो रहे हैं। महिंद्रा ने 2014 में सैंगयोंग का अधिग्रहण किया था, लेकिन इसकी कारों ने भारत में कोई अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। इसका एक कारण यह भी है कि इसका फोकस प्रीमियम सेगमेंट पर है, जबिक भारतीय ग्राहकों का अभी भी 10 लाख रुपए से कम कीमत वाली कारों के प्रति ज्यादा झुकाव है।
हालांकि, भारतीय बाजार में प्रवेश करने के लिए चीनी कंपनियों ने ज्यादा देर नहीं की है। स्थानीय ऑटो कंपनियों द्वारा बेहतर प्रदर्शन करने के साथ ही, यह चीनी कंपनियां भी यहां अपना विस्तार करने के लिए सक्षम होंगी और उन्हें अन्य साउथईस्ट एशियन बाजार जैसे इंडोनेशिया और मलेशिया तक पहुंचने में भी मदद मिलेगी। इतना ही नहीं, सुजुकी और फोर्ड के लिए भारत ऑटोमोबाइल के लिए एक एक्सपोर्टर हब भी है, जो इन कंपनियों की बिक्री में एक अहम योगदान देता है।
कार कीमतों को लेकर छिड़ सकती है जंग
चीनी कंपनियों के साथ हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि उनकी कीमत काफी प्रतिस्पर्धी हो सकती है और उनके इन्नोवेशन भी काफी अलग और महत्वपूर्ण होते हैं, ऐसा अमेरिकन और यूरोपियन कारों में नहीं दिखता है। ऐसे में चीनी कंपनियों के आने से ऑटोमोबाइल सेक्टर में कीमतों को लेकर जंग छिड़ने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। इतना ही नहीं चीन की लीईको, अलीबाबा और टेनसेंट जैसी कंपनियों ने अब इलेक्ट्रिक कार सेगमेंट में भी अपने कदम रख दिए हैं, ऐसे में भारत उनके लिए एक बड़ा बाजार साबित हो सकता है।