नई दिल्ली। करदाताओं और कर अधिकारियों के बीच कानूनी मुद्दों की संख्या में कमी लाने के लिये करदाताओं के कर रिटर्न में लेन-देन के ब्योरों के व्यापक विश्लेषण से जुड़ी जांच-आकलन प्रक्रिया के मामलों में अगले तीन साल की अवधि में उल्लेखनीय रूप से कमी लाई जानी चाहिए। CBDT द्वारा गठित एक समिति ने यह सुझाव दिया है। जांच आकलन में विवरण दाखिल करने वाले व्यक्ति को उसके संदिग्ध खर्चों, नुकसान या छूट के बारे में सफाई पेश करने का मौका दिया जाता है।
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आकलन अधिकारी को दिए जाने वाले जांच के मामलों की संख्या कम की जाए
- समिति ने आयकर विभाग की नीति बनाने वाली शीर्ष निकाय केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) को सौंपी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि प्रत्येक आकलन अधिकारी (AO) की दी जाने वाली ऐसी जांच से जुड़े मामलों की संख्या भी सीमित की जानी चाहिए।
- इसका मकसद आकलन अधिकारियों को विभाग के लिये अधिक प्रभावी बनाना है तथा करदाताओं के लिये जटिलताओं को कम करना है।
- समिति के अनुसार तीन साल में आकलनों की जांच में उल्लेखनीय रूप से कमी लाई जानी चाहिए ताकि इस अवधि के दौरान कानूनी विवाद घट सकें।
- साथ ही प्रति आकलन अधिकारी सालाना जांच मामलों की संख्या सीमित की जाए ताकि जांच एवं आकलन के लिए उपयुक्त समय मिले।
- समिति ने विभाग में कानूनी विवादों में कमी लाने के लिये तत्काल कदम उठाये जाने की जरूरत के बारे में अपनी रिपोर्ट दी है।
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पिछले साल सौपी रिपोर्ट अब हुई सार्वजनिक
- आयकर आयुक्त (कानूनी एवं अनुसंधान) सुनीता बैंसला की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय समिति ने पिछले साल सितंबर में अपनी रिपोर्ट सीबीडीटी को सौंपी जिसे अब सार्वजनिक किया गया है।
- विभाग के शीर्ष सूत्रों ने बताया कि नोटबंदी से कर अधिकारियों के समक्ष बड़ी चुनौती आयी है।
- संदिग्ध कालाधन मामलों की जांच के लिये कई प्रकरणों की जांच की जा सकती है।
- ऐसे में CBDT भविष्य के मामलों की जांच हेतु नये नियम बनाने के लिये समिति के विचारों पर गौर करेगी।
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