भारत को Cashless India बनाने की राह है मुश्किल, मंजिल पाना नहीं होगा आसान
नोटबंदी को पहले कालेधन और जाली नोटों के खिलाफ बड़ी लड़ाई बताया गया लेकिन अब इसे मोदी सरकार ने Cashless India बनाने की पहल बताना शुरू कर दिया।
नई दिल्ली। 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपए के नोट को जब बंद करने की घोषणा की गई थी तब इसे कालेधन और जाली नोटों के खिलाफ बड़ी लड़ाई बताया गया था। लेकिन 30 दिसंबर आते-आते मोदी सरकार ने इसे Cashless India बनाने की पहल बताना शुरू कर दिया।
अमेरिका जैसा पूर्ण विकसित देश भी अभी तक पूरी तरह कैशलेस नहीं बन पाया है, ऐसे में भारत को कैशलेस बनाने की यह कोशिश कितनी सफल होगी, यह तो समय ही बताएगा।
जनधन जैसी फाइनेंशियल इनक्लूजन स्कीम के बावजूद 12 प्रतिशत लोगों के पास बैंक एकाउंट और 85 प्रतिशत लोगों के पास डेबिट और क्रेडिट कार्ड नहीं हैं, तो फिर डिजिटल पेमेंट क्रांति कैसे होगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि अभी देश को कैशलेस बनने में कम से कम अभी 10 से 15 साल लगेंगे।
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बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव प्रोफेसर शार्दूल चौबे का कहना है,
भारत बहुत बड़ा देश है और यहां असमानताएं बहुत ज्यादा हैं। इसके लिए डिजिटल बुनियादी ढांचा होना बहुत जरूरी है। हम अभी 3जी, 4जी पर ही अटके हुए हैं, देश का एक बड़ा वर्ग गांवों में बसता है। नोटबंदी का फैसला ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नजरअंदाज कर लिया गया है, डिजिटल अज्ञानता के बारे में तो सोचा ही नहीं गया है। देश के डिजिटल बनने में अभी कम से कम 10 से 15 साल लग सकते हैं।
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क्या लोगों को पहले शिक्षित करना है जरुरी
- देश की 125 करोड़ की आबादी में से अधिकतर लोग गरीब और अशिक्षित हैं, जिनके लिए कैशलेस लेनदेन की बात बेमानी है।
- उन्हें कैशलेस की आदत डालने से पहले शिक्षित करना पड़ेगा, जो अपने आप में एक बड़ा काम है।
- देश के जिस एक तबके को स्मार्टफोन चलाना तक नहीं आता, उनके लिए ई-बैंकिंग की डगर बहुत कठिन है।
- देश के 70 करोड़ लोगों के पास ही बैंक खाता है।
- इनमें से 24 करोड़ खाते पिछले एक साल में जनधन योजना के तहत खुले हैं और वे इसे लेकर कितने सजग है, यह भी सोचने वाली बात है।
35 फीसदी आबादी तक इंटरनेट की पहुंच
- हमारे देश में 75 फीसदी आर्थिक लेन-देन नकदी में होता है। अमेरिका, फ्रांस, जापान और जर्मनी में यह आंकड़ा 20 से 25 फीसदी है।
- देश में लगभग दो लाख एटीएम हैं और अधिकांश भारतीय डेबिट कार्ड का इस्तेमाल केवल एटीएम से पैसा निकालने के लिए करते हैं।
- इंटरनेट की पहुंच भी फिलहाल 34.8 फीसदी आबादी तक ही है। ऐसे में सरकार लोगों को कैशलेस बनने के लिए किस तरह तैयार करेगी।
- फिलहाल, देश की साक्षरता दर 74.04 फीसदी है। प्लास्टिक मनी और ऑनलाइन लेनदेन के लिए शिक्षित होना अनिवार्य है।
- अशिक्षा की स्थिति में धोखाधड़ी की आशंका रहती है और डिजिटल में हैकिंग भी एक बड़ा मुद्दा है।
बहुत कम लोगों के पास है स्मार्टफोन
- प्यू रिसर्च के इस साल के एक सर्वे के मुताबिक, सिर्फ 17 प्रतिशत व्यस्कों के पास स्मार्टफोन है।
- लो इनकम ग्रुप में तो बस 7 प्रतिशत के पास ही ऐसे हैंडसेट हैं, जिन पर बैंकिंग एप्लीकेशंस ऑपरेट किए जा सकते हैं।
इंटरनेट कनेक्शन में भी फिसड्डी
- इंटरनेट कनेक्शन के मामले में भी हालत खराब है।
- ट्राई के इस साल के एक सर्वे में बताया गया है कि देश में इंटरनेट सब्सक्राइबर्स की संख्या 34.2 करोड़ है और 91.2 करोड़ भारतीयों की पहुंच इंटरनेट तक नहीं है।
- इसमें शहरों में 58 प्रतिशत लोगों की पहुंच इंटरनेट तक है।
- बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की पिछले साल की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में 12 करोड़ लोगों की पहुंच इंटरनेट तक थी, जो 2020 में 31.5 करोड़ हो जाएगी।