चंडीगढ़। टेलीकॉम ऑपरेटरों और सरकार के बीच विवाद और बढ़ता नजर आ रहा है। टेलीकॉम इंडस्ट्री ने कॉल ड्रॉप और खराब सर्विस की समस्या के लिए मोबाइल टावर लगाने के लिए मंजूरी मिलने में देरी और उपभोक्ताओं द्वारा डाटा इस्तेमाल में बढ़ोतरी को वजह बताया है। इससे पहले कॉल ड्रॉप जुर्माने को लेकर टेलीकॉम कंपनियों ने दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की, जिसके लिए कोर्ट ने ट्राई से जबाव तलब किया है।
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टावर लगाने के लिए मंजूरी देने में देर सकती है सरकार
सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सीओएआई) ने केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों पर यह इल्जाम लगाया है कि टावर लगाने के लिए मंजूरी देने देरी करते है। इसकी देरी की वजह से वे पिछले दो साल में सिर्फ 20,000 से 25,000 टावर ही लगा पाए हैं, जबकि जरूरत एक लाख साइटों पर लगाने की है। सीओएआई ने कहा कि कॉल ड्रॉप की समस्या में इसलिए भी इजाफा हुआ है क्योंकि उपभोक्ताओं द्वारा डाटा का इस्तेमाल अब अधिक हो रहा है। सीओएआई के डायरेक्टर जनरल राजन एस मैथ्यूज ने से कहा, मुख्य समस्या टावरों के लिए मंजूरी है। इसमें करीब 9-10 महीने का समय लगता है। टावर लगाने के लिए मंजूरी देने में केंद्र से छह महीने और राज्यों के स्थानीय अधिकारियों से तीन महीने लगाते हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्राइ से मांगा जवाब
दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकार (ट्राइ) से उसके कॉल ड्राप संबंधी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आज जवाब तलब किया। ट्राई ने आदेश जारी कर मोबाइल सेवाएं देने वाली दूरसंचार कंपनियों को एक जनवरी से कॉल ड्राप होने पर उपभोक्ताओं की अनिवार्यतः क्षतिपूर्ति करने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी।
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