मंत्रिमंडल ने दिल्ली में सात आवासीय कालोनियों के पुनर्विकास को मंजूरी दी
राष्ट्रीय राजधानी में सरकारी आवास की समस्या को दूर करने के इरादे से केन्द्र ने मौजूदा सात आवासीय कालोनी के पुनर्निमाण का फैसला किया।
नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में सरकारी आवास की समस्या को दूर करने के इरादे से केन्द्र ने मौजूदा सात आवासीय कालोनी के पुनर्निमाण का फैसला किया। इससे इन कालोनियों में मकानों की संख्या मौजूदा 12,970 से बढ़कर 25,667 हो जाएगी। इस पर कुल 32,835 करोड़ रुपए की लागत आएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में सरोजनी नगर, नेताजी नगर, नौरोजी नगर आवासीय कालोनियों का पुनर्निर्माण नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन लि. (एनबीसीसी) के जरिए किया जाएगा तथा कस्तूरबा नगर, त्यागराज नगर, श्रीनिवासपुरी तथा मोहम्मदपुर की आवासीय कालोनियों में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के जरिए पुनर्विकास को मंजूरी दी गई है।
केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा, दिल्ली में कर्मचारियों के लिए आवास की कमी की प्राय: शिकायत की जाती है। मंत्रिमंडल ने सात जगहों पर आवासीय कालोनी के पुनर्निर्माण का फैसला किया है। उन्होंने कहा, इस पर कुल 32,835 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। पुनर्निर्माण, पुनरूद्धार तथा नए निर्माण के बाद आवासों की संख्या 12,970 से बढ़कर 25,667 हो जाएगी। इससे उन सरकारी कर्मचारियों को मदद मिलेगी जो सरकारी आवास के लिए लंबे समय तक इंतजार करते रहते हैं।
योजना के तहत 7.49 लाख वर्ग मीटर में बने टाइप एक से चार की आवासीय इकाइयों को करीब 29.18 लाख वर्ग मीटर निर्मित क्षेत्र में टाइप दो से छह की आवासीय इकाइयों में पुनर्निर्माण किया जाएगा। परियोजना के तहत नेताजी नगर में 2.42 लाख वर्ग मीटर में सरकारी कार्यालय सुविधाओं को भी विकसित किया जाएगा। परियोजना की अनुमानित लागत 32,835 करोड़ रुपए है जिसमें तीस साल के लिये रखरखाव तथा परिचालन लागत शामिल हैं और इसे चरणबद्ध तरीके से पांच साल में पूरा किया जाएगा।
योजना का क्रियान्वयन स्व:वित्तपोषण आधार पर होगा जिसमें रिंग रोड़ के साथ नारोजी नगर और सरोजनी नगर के एक हिस्से में निर्मित वाणिज्यिक क्षेत्र की बिक्री की जायेगी। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने यह प्रस्ताव मंत्रिमंडल को भेजा था। मंत्रालय ने सरकारी आवासों की संख्या बढ़ने के इरादे से पुरानी कालोनियों को नए सिरे से विकसित करने का प्रस्ताव किया था ताकि दिल्ली के 2021 की मास्टर योजना के मुताबिक उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल किया जा सके और हरित भवन निर्माण नियमों के साथ ही इनमें ठोस-तरल अपशिष्ट की प्रबंधन सुविधाओं को विकसित किया जा सके।
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