Budget 2019: रीयल एस्टेट क्षेत्र को मिले उद्योग का दर्जा, 1.5 लाख रुपए तक के भुगतान पर हो टैक्स छूट
रीयल एस्टेट क्षेत्र की सलाहकार कंपनी नाइट फ्रेंक ने आयकर कानून की धारा 80सी के तहत आवास ऋण के मूल की वापसी पर अलग से डेढ़ लाख रुपए तक की कर छूट दिए जाने की मांग की है।
नई दिल्ली। रीयल एस्टेट बाजार के बारे में परामर्श सेवा देने वाली कंपनियों ने बजट में इस क्षेत्र को उद्योग का दर्जा देने, मकानों पर जीएसटी का बोझ कम किए जाने तथा आवास ऋण पर सालाना डेढ़ लाख रुपए तक के मूल धन के भुगतान पर आयकर में अलग से कटौती का प्रावधान करने की सिफारिश की है।
रीयल एस्टेट क्षेत्र की सलाहकार कंपनी नाइट फ्रेंक ने आयकर कानून की धारा 80सी के तहत आवास ऋण के मूल की वापसी पर अलग से डेढ़ लाख रुपए तक की कर छूट दिए जाने की मांग की है। उसका कहना है कि आवास क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकार को आवास ऋण की मूल राशि के डेढ़ लाख रुपए तक के वार्षिक भुगतान पर अलग से कर छूट देनी चाहिए। इससे रीयल एस्टेट क्षेत्र में मांग बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी।
उन्होंने बजट पूर्व सिफारिशों में मकानों पर माल एवं सेवाकर (जीएसटी) में भूमि की कीमत के लिए एबेटमेंट की दर एक तिहाई से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की मांग की है। एबेटमेंट के तहत घटे मूल्य पर कर लगाया जाता है। नाइट फ्रेंक ने बजट पूर्व सिफारिश में कहा गया है कि क्षेत्र में मांग परिदृश्य अभी भी काफी दबाव में है तथा गैर-बैंकिंग वित्त कंपनी (एनबीएफसी) संकट से स्थिति और जटिल हुई है।
कंपनी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक शिशिर बैजल ने सस्ते मकानों की योजनाओं में जीएसटी पर जमीन की कीमत के लिए एबेटमेंट की दर मौजूदा एक तिहाई से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का सुझाव दिया है। उनकी सिफारिश है कि सरकार को 2022 तक सभी के लिए आवास योजना के तहत सस्ते आवासों पर भी जीएसटी में जमीन के मूल्य पर 50 प्रतिशत तक एबेटमेंट देना चाहिए।
वर्तमान में इस वर्ग के मकानों पर 12 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगता है और एक तिहाई जमीन मूल्य पर छूट से प्रभावी दर आठ प्रतिशत रह जाती है। यदि जमीन मूल्य पर 50 प्रतिशत एबेटमेंट मिलेगा तो जीएसटी की प्रभावी दर 6 प्रतिशत रह जाएगी और मकान का दाम और कम होगा।
परामर्श कंपनी रियलिस्टिक रीयल्टर्स ने आवास क्षेत्र पर जीएसटी की दर में सुधार करते हुए इसे 12 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत करने की सिफारिश की है। रियलिस्टिक रीयल्टर्स के चेयरमैन हरिंदर सिंह ने सुझाव दिया है कि स्टैम्प ड्यूटी को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाए, ब्याज कटौती की सीमा को 2 लाख से बढ़ाकर 3 लाख या उससे अधिक किया जाए। रियलिस्टिक रीयल्टर्स की सिफारिश है कि किराये से होने वाली आय में संपत्ति की निर्माण लागत पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ दिया जाए।