सभी तरह के कर्ज पर ब्याज माफी की नहीं है योजना, सरकार ने कहा बैंकों पर पड़ेगा 6 लाख करोड़ रुपये का बोझ
भारतीय स्टेट बैंक को अगर छह महीने के ब्याज पूरी तरह से माफ करने हों तो इस बैंक द्वारा करीब 65 साल में अर्जित की गई कुल संपदा का आधे से ज्यादा हिस्सा खत्म हो जाएगा।
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर रिजर्व बैंक द्वारा छह महीने के लिए ऋण किस्तों के भुगतान पर स्थगन योजना के तहत सभी वर्गों को यदि ब्याज माफी का लाभ दिया जाता है तो इस मद पर छह लाख करोड़ रुपये से ज्यादा धनराशि का बोझ बैंकों पर पड़ेगा। केंद्र ने कहा कि अगर बैकों को यह बोझ वहन करना होगा तो उन्हें अपनी कुल संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा गंवाना पड़ेगा, जिससे अधिकांश कर्ज देने वाले बैंक संस्थान अलाभकारी स्थिति में पहुंच जाएंगे और इससे उनके अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो जाएगा।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ को केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह जानकारी दी और कहा कि इसी वजह से ब्याज माफी के बारे में सोचा भी नहीं गया और सिर्फ किस्त स्थगित करने का प्रावधान किया गया था। शीर्ष अदालत कोविड-19 महामारी के मद्देनजर रिअल एस्टेट और ऊर्जा सेक्टर सहित विभिन्न संस्थाओं द्वारा राहत के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
तो एसबीआई की आधी संपत्ति हो जाएगी खत्म
शीर्ष अदालत में दाखिल लिखित दलीलों को पढ़ते हुए मेहता ने कहा कि अगर सभी वर्गों और श्रेणियों के कर्जदारों के सारे कर्जों और अग्रिम दी गई राशि पर मोरेटोरियम अवधि का ब्याज माफ किया जाए तो यह रकम छह लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा होगी। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि देश के सबसे बड़े बैक भारतीय स्टेट बैंक को अगर छह महीने के ब्याज पूरी तरह से माफ करने हों तो इस बैंक द्वारा करीब 65 साल में अर्जित की गई कुल संपदा का आधे से ज्यादा हिस्सा खत्म हो जाएगा।
जमाकर्ताओं को ब्याज का भुगतान बड़ी जिम्मेदारी
मेहता ने कहा कि जमाकर्ताओं को ब्याज (ब्याज पर ब्याज सहित) का सतत् भुगतान सिर्फ सबसे आवश्यक बैंकिंग गतिविधि ही नहीं है बल्कि यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, जिसके साथ समझौता नहीं किया जा सकता क्योंकि अधिकांश छोटे-छोटे जमाकर्ता और पेंशन धारक आदि हैं जो अपनी जमा राशि पर मिलने वाले ब्याज पर निर्भर रहते हैं। सॉलिसीटर जनरल ने इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के 25 सितंबर के हलफनामे का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय स्टेट बैंक ने कहा था कि छह महीने के मोरेटोरियम अवधि का ब्याज करीब 88,078 करोड़ होता है, जबकि जमाकर्ताओं को इस अवधि के लिए देय ब्याज करीब 75,157 करोड़ होता है।
अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होगा
मेहता ने कहा कि इस मामले में और आगे जाना कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होगा और देश की अर्थव्यवस्था या बैंकिंग सेक्टर इस वित्तीय दबाव को सहन नहीं कर सकेंगे। सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि केंद्र ने रेस्तरां और होटल जैसे क्षेत्र सहित छोटे और मझोले आकार के कारोबार/एमएसएमई प्रतिष्ठानों को राहत देने के उपाय किए हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र ने कम ब्याज दर पर पूरी तरह सरकार की गारंटी पर तीन लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त ऋण देने की आपात योजना लागू की है। इस योजना का कोविड-19 से प्रभावित रेस्तरां और होटल सेक्टर सहित 27 सेक्टरों के लिए उच्च वित्तीय सीमा तक विस्तार किया गया है। मेहता ने रिजर्व बैंक द्वारा नियुक्त के वी कामत की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति के बारे में भी बताया। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों के कर्जदारों को 26 श्रेणियों में बांटा है। समिति ने इसके लिए मानदंड तय किए हैं जिसके तहत बैंक उनके कर्ज खातों को पुनर्गठित कर सकते हैं।